SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश साहित्य अकादमी प्रमुख योजनाएं अपभ्रंश साहित्य के अध्ययन-अध्यापन एवं प्रचार-प्रसार हेतु दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी की प्रबन्धकारिणी कमेटी द्वारा संचालित जैनविद्या संस्थान के अन्तर्गत 7 नवम्बर 1988 को 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' की स्थापना की गई । अपभ्रंश भाषा का अध्ययन प्राधुनिक भारतीय भाषाओंों और उनकी बोलियों के साहित्य के अध्ययन में प्रमुखरूप से सहायक है । अपभ्रंश साहित्य अकादमी की अपनी एक योजना है, लक्ष्य है, कुछ अपेक्षाएंप्राकांक्षाएं हैं और कुछ उपलब्धियां । योजनाएं - परिचय - प्रसार प्रकोष्ठ, शोध और प्रायोजना प्रकोष्ठ, पांडुलिपि प्रकोष्ठ आदि के माध्यम से प्रारम्भ की जानेवाली कतिपय प्रमुख योजनाएं 1. परिचय प्रसार प्रकोष्ठ (अ) अपभ्रंश प्रवेशिकाओं का निर्माण जिससे अपभ्रंश भाषा को सरलरूप में सीखासिखाया जा सके । ( आ ) 1 विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के हिन्दी विभागों एवं क्षेत्रीय भाषा विभागों से सम्पर्क करना । 2 उनके पाठ्यक्रमों में अपभ्रंश को स्थान दिलाना । 3 उनका पाठ्यक्रम बनाना । 4 तदनुरूप पाठ्यसामग्री का संकलन एवं उसका प्रकाशन । (इ) विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के प्रवक्तानों-प्राध्यापकों को अपभ्रंश भाषा, साहित्य, व्याकरण पढ़ने-पढ़ाने के लिए प्रशिक्षण देना और तदनुरूप अल्पकालीन शिविरों की व्यवस्था करना ।
SR No.521851
Book TitleApbhramsa Bharti 1990 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1990
Total Pages128
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy