SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बीकानेरका त्रैलोक्यदीपक प्रासाद। ___ लेखक : श्रीयुत अगरचन्दजी नाहटा बीकानेर राज्यकी स्थापना राव बीकाजीने संवत् १५४५ के लगभग की। जोधपुरसे आते समय उनके साथ कई ओसवाल जैन भी थे। अतः बीकानेर राज्यके किलेकी नींव डालनेके साथ-साथ चिंतामणिजीके जैन मंदिरकी भी नींव डाली गयी। इस मंदिरका संवत् १५६१ राव बीकाजीके समयका शिलालेख है । इसके पश्चात् भांडाशाहने सुमतिनाथका एक जैन मंदिर बहुत ऊँची भूमिका पर बनाया। संवत् १५७१ में राजाधिराज लूनकरणजीके समय यह मंदिर तैयार हुआ। सूत्रधार गोदाने इसके निर्माणमें मुख्य रूपसे भाग लिया। इस मंदिरके शिलालेखमें इस विशिष्ट जिनालयका नाम 'त्रैलोक्यदीपक ' लिखा मिलता है । ___ जोधपुर राज्यके सुप्रसिद्ध राणकपुरके धरणाशाहके 'त्रैलोक्यदीपक-प्रासाद'का परिचय 'लोकवाणी' व 'धर्मयुगादि 'के पाठक पा चुके हैं। बीकानेरका यह भांडाशाहका जिनालय उसी राणकपुरके विशाल जैन मंदिरका अनुकरण है। इसके निर्माता भांडाशाहके नामसे बीकानेर में यह मंदिर भांडाशाहजीके नामसे ही प्रसिद्ध है। राजकीय लक्ष्मीनाथजीके मंदिरके पास ही यह त्रिमंजिला जिनालय बहुत दूरसे ही लोगोंको आकर्षित करता है। बीकानेर राज्यभरमें इतना विशाल कलापूर्ण और ऊंचा अन्य कोई प्रासाद नहीं है। मंदिरके परकोटेकी लंबाई सामनेको ओरसे १७० फुट और पीछेकी ओरसे १९० फुट है। चौड़ाई सामनेको ओरसे १४४॥ फुट और पीछेकी ओरसे १०९॥ फुट है। परकोटेके भीतर मूल मंदिरके चारों ओर काफी स्थान खुला छोड़ा गया है । मूल मंदिरकी लंबाई ७२।। फुट, बाह्य मंडप २२॥ फुट अर्थात् ९५ फुट है । और चौड़ाई पीछे की ओर ५२।। फुट तथा सामनेकी ओर ३९ फुट है। समतल भूमिसे ११२ फुट मंदिरका शिखर ऊंचा है । और फर्शते शिखर तककी ऊंचाई ८१ फुट है। मंदिर कितना संगीन बना है यह उसके सामनेके परकोटेके औसारसे ही पाठक अनुमान लगा सकते हैं । इसकी दीवारकी चौड़ाई १० फुटके लगभग व कंगूरोके पास २॥ फुट चौड़ी है। इससे इस मंदिरकी ऊंचाई, विशालता और भव्यताका कुछ आभास मिल सकता है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण बीकानेर बसनेके साथ साथ या उससे भी पहले आरंभ हो गया था। इसको बनानेके लिए पानी 'नाल' नामक स्थानसे (जो कि बीकानेरसे आठ मील दूर है) लाया जाता था और पत्थर जैसलमेरसे । जैसलमेरका पीला टिकाऊ पत्थर इधर और भी कई मंदिरोंमें प्रयुक्त हुआ है। इस पत्थरमें जाली और शिल्पकार्य बहुत सुन्दर होता है। ___ कहा जाता है कि इसके निर्माता मांडाशाह धोका व्यापार करते थे। हजारों मन घी इनके यहां संग्रहीत रहता था जिसे ऊंटो द्वारा बाहर भेजा जाता था। एक दिन घीमें एक For Private And Personal Use Only
SR No.521726
Book TitleJain_Satyaprakash 1955 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1955
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy