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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir અંક : ૧૦ ] સં. ૧૫૦૪ કે વિજયયંત્ર પટ્ટકા લંદન પ્રવાસ [ ૧૭૯ पूर्व पालनपुरनिवासी पुरातत्त्व एवं कलाप्रेमी श्रीनाथालाल छगनलाल शाह बीकानेर आये और कई दिन वहां रहे। उनके साथ कलासामग्री आदिके सम्बन्धमें चर्चा होते एकबार वस्त्रपट आदिकी बात निकली । उन्होंने हमारे संग्रहके वस्त्रपट देखकर श्रीजिनभद्रसूरि-प्रतिष्ठित एक बृहदाकार चित्रपटको लंदनके म्यूजियमको प्रदानकर देनेकी बात कही। हमने उसकी प्रतिकृति देखनेकी उत्सुकता प्रकट को तो उन्होंने बम्बई जाकर उसका फोटू भेज दिया। इस पटका इतः पूर्व श्रीसाराभाई नवाबने सं. १९९२ के जैन सत्य प्रकाश पुस्तक २, अंक २ में प्रकाशित अपने 'सरस्वती पूजा अने जैनो' नामक लेखमें उल्लेख किया था। उन्होंने लिखा है-" पालनपुरना रहीश अने पुरातत्त्व संशोधनमा रस धरावता श्रीयुत नाथालाल छगनलाल शाहना संग्रहमा वि. सं. १५०४ नी सालमां कपड़ा पर चित्राएलो एक विजय. पताका यंत्र छे ते यंत्र ऊपरना मथालाना भागमां सोनानी स्याहीथी चीतरेखें सरस्वती देवीतुं एक सुन्दर चित्र छे जे हजु सुधी अप्रसिद्ध छ । तेमां पण देवीने चार हाथ छे तेनां आयुधो वगेरेनां वर्णन बराबर हालमां मने याद नथी अने तेमां कंइ विशिष्टता नहीं होवाथी तेनो उल्लेख हुँ अत्रे करी शकतो नथी." प्रस्तुत चित्र पट नाथालालभाईके पास कहांसे आया इस विषयमें अनुसन्धान करने पर जैनयुगके सं. १९८४ (वर्ष-३ ) अंक ११ में स्वर्गीय मोहनलाल दलीचंद देसाईका "अमारो खेड़ानो ज्ञानप्रवास' शीर्षक भ्रमणवृत्तान्त में ज्ञातव्य जानकारी मिली, जो इस प्रकार है:-"खेड़ाना मोटा मंदिर (अमीझरा पार्श्वनाथ) मा रहेता भाग्यरत्न मुनि पासे केटलाक पुस्तकोनो संग्रह होवा उपरांत केटलाक कागलो ऐतिहासिक छे, तेमज एक विजयपताका यंत्र कपड़ा पर लखेलो छे ते कपड़ानी लंबाई ४ फुट ने ५ इंच अने पहोलाइ ३ फुटने ५॥ इंच छ । सं. १५०४ मां दीवाली दिने खरतर जिनभद्रसूरिसे लखेलो छे एवो नीचे प्रमाणे लेख छे: “संवत् १५०४ वर्ष दीपोत्सवदिने लिखित प्रतिष्ठित श्रीखरतरगच्छाधीश्वर श्रीजिनभद्रसूरिभिरिदं जेत्रपताकाख्ययंत्र ।। सपरिवारस्य जैत्रं वांछितसिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा॥" आनी बे बाजुए रंगित कोर छे अने बीजी बे बाजुओ चित्रो आलेखेलां छे। ते चित्रो रजपूत शाला (School) नां छे । यंत्र लाल शाहीमा छ ।” अभी ता. ३१ जनवरी १९५४ कलकत्तानिवासी श्रीगोपीकृष्ण कातोडियाके साथ W. G. आर्चर ( कीपर आफ इन्डियन सेक्सन विकटोरिया म्यूजियम लंदन ) हमारे संग्रहालयका अवलोकन करने बीकानेर पधारे तो उपर्युक्त विजययंत्रका फोटो दिखाने पर उन्होंने पहचान कर यह तो हमारे म्यूजियममें है, बतलाया। मैंने पूछा-क्या इनके संबन्धमें कोई लेख प्रकाशित हुआ है ? तो उन्होंने कहा-नहीं। अतः इस महत्त्वपूर्ण पटको कलाका सर्व प्रथम परिचय इसी लेखके द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है : For Private And Personal Use Only
SR No.521712
Book TitleJain_Satyaprakash 1954 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1954
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size11 MB
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