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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१४७ an's: ८] રાજસી સાહ રાસકા સાર पथिकोंके लिए विश्रामगृह करवाया और पास हीमें हनुमंत देहरी बनवायी। नाम नदीके पूर्वकी ओर बहुत से स्तंभोवाला एक चौग बनवाया जिसकी शीतल छायामें शीत व तापसे व्याकुल मानव आकर बैठते हैं। नवानगरमें राजड्ने विधिपक्षका उपाश्रय बनवाया सौ द्वार वाली वस्तुपालकी पौषधके सदृश राजड़की अंचलगच्छ परशाल थी। धारागिरके पास तथा अन्यत्र इन्होंने वखारें की। काठावाणि पाषाणका सप्तभूमि मन्दिर सुशोभित था। जिसकी सं. १६७५ में राजड़ने बिंबप्रतिष्ठा करवायी। जाम साहबने इन्हें बड़ा आदर किया । सं. १६८७ के दुष्कालमें गरीबों को रोटी तथा १॥ कलसी अन्न प्रतिदिन बांटते रहे । वणिकवर्ग जो भी आता उसे वजन की तरह सादर भोजन कराया जाता था। इस दुष्का में जगडूसाह की तरह राजड़ने भी अन्नसत्र खोले और पुण्यकार्य किये। अब राजड़के मनमें शत्रुजय यात्राकी भावना हुई और संघ निकाला। शत्रुजय आकर प्रचुर द्रव्यव्यय किया। भोजन और साकरके पानीकी व्यवस्था की। आदिनाथ प्रभु और बावनजिनालयकी पूजा कर ललितसरोवर देखा । पहाड़ पर जगह जगह जिनवंदन करते हुए नेमिनाथ, मरुदेवी माता, रायण पगली, शांतिनाथप्रासाद, अदबद आदिनाथ, विघ्नविन.शन यक्षस्थानमें फल नारियल भेंट किये। मुनिवर कारीकुण्ड (१) मोल्दावसही, चतुर्विशतिजिनालय, अनुपमदेसर, व.गप्रासाद आदि स्थानोंमें चैत्यवंदना की। खरतर देहरा, आदिनाथ, धोडाचोकी, सिंहद्वार आदि स्थानों को देखते हुए वस्तपाल देहरी, नंदीश्वर जिनालय, होकर तिलखा तोरण-भरतेश्वरकारित आदि जिनालयके द्वार पर आये। दाहिनी ओर साचोरा महावीर, विहरमान, पांच पांडव, अष्टापद, ७२ जिनालय, मुनि मुव्रत और पुण्डरीकस्वामीको वंदना कर मूलनायक आदीश्वर भगवानकी न्हवग विलेपनादिसे विधिवत् पूजा की। फिर नवानगरमें आकर सात क्षेत्रोंमें द्रव्यव्यय किया। रामूने गौड़ी पार्श्वनाथकी यात्राके निमित्त भूमिशयनका नियम ले रखा या, अतः संघ निकालनेका निश्चय किया गया । वागड़, कच्छ, पचाल, हालार आदि स्थानों के संघ निमत्रंण पाकर एकत्र हुए। पांचसौ सेजवाला लेकर संघ चला, रथोंके खेड्से सूर्य भी मंद दिखाई देता था। प्रथम प्रयाण ●आवि, दूसरा भाद्रअ, तीसरा केसी और चौथा बालामेय किया। वहांसे रणमें रथ घोड़ोंको खेड़कर पार किया और कोकाण आये, एक रात रह कर अंजार पहुंचे। यहां यादव खेंगारके पास अगणित योद्धा थे। कुछ दिन अंजारमें रह कर संघ धमडाक पहुंचा। वहांसे चुखारि वाव, लोद्राणी, रणनी घेडि, खारकी, राणासर होते हुए पारकर पहुंचे। रणाको भेंट देकर सम्मानित हुए, फिर गौड़ीजी तरफ चले। चौदह कोस थलमें चलनेपर श्रीगौड़ीजी पहुंचे। नवानगरसे चलने पर मागमें जो भी गांव नगर आये, दो सेर खांड और रौप्यमुद्रा लाहण की। राजड़ और रामाने भावपूर्वक प्रभु दर्शन कर सतरह मेदी पूजा की। संघ इतर लोगोंको अन्न व मिष्टान्न भोजन द्वारा भक्तिकर संतुष्ट किया। अब श्रीगौड़जीसे वापस लौटे और नदी, गांव और विषम मार्गको पार करते हुए सकुशल नवानगर पहुंचे। राजड़शाहकी बड़ी कीर्ति फैली। जब अंचलगच्छके स्वधर्मी बन्धुओंमें राजड़ साहने जो लाहण वितरित की, वह समस्त भारतवर्ती प्रामनगरमें निवास करनेवाले श्रावकोंसे सम्बन्धित थी। रासमें आये हुए स्थानोंकी नामावली यहां दी जाती है जिससे उस समय अंचलगच्छका देशव्यापी प्रचार विदित होता है। १ नौतनपुर, २ धूआवि, ३ वणथळी ४ पडधरी, ५ राजकोट लइभा, लघु, मोरबी, हळवद, कटारिअ, विहंद, धमडक, चंकासर, अंजार, भद्रेस, भूहक, वारदी, बाराही, For Private And Personal Use Only
SR No.521710
Book TitleJain_Satyaprakash 1954 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1954
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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