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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हर्षसागर रचित राजसी साह रासका सार लेखक : श्रीयुत भंवरलालजी नाहटा [गतांकसे पूर्ण] राजड़के मनमें बड़ी उमंग थी। उसने विमल, भरत, समरा, जियेष्टल, जावड, बाहढ़ और वस्तुपालके शत्रुञ्जयोद्धारकी तरह नाग नयरमें चैत्यालय करवाया । सं. १६७२ में उसका मंडाण प्रारंभ किया । वास्तुक जसवंत मेधाने अष्टमीके दिन शुभ महूर्तमें ९९ गज लंबे और ३५ गज चौड़े विशाल जिनालयका पाया लगाया। पहला थर कुंजाका, दूसरा किलसु, तीसरा किवास, चौथा मांको, पांचवा गजड़बंध, छट्ठा डोढिया, सातवां स्तरभरणी, आठवां सरावट, नवां मालागिर, दसवां स्तर छाज्जा, ग्यारहवां छेपार और उसके उपर कुंभिविस्तार किया गया। पहला दूसरा जामिस्तर करके उस पर शिला-शंग बनाये। महेन्द्र नाम चौमुख शिखरके ६०९ श्रृंग और ५२ जिनालयका निर्माण हुआ। ३२ पुत्तलियां नाट्यारंभ करती हुई, १ नेमिनाथ चौरी, २६ कुंभि, ९६ स्तंभ चौमुखके नीचे तथा ७२ स्तंभ उपरिवर्ती थे । इस तरह नागपन्न मण्डपवाले लक्ष्मीतिलक प्रासादमें श्रीशांतिनाथ मूलनायक स्थापित किये। द्वारके उभय पक्षमें हाथी सुशोभित किये। आबूके विमलप्रासादकी तरह नौतनपुरमें राजड़ साहने यशोपार्जन किया। इस लक्ष्मीतिलक प्रासादमें तीन मण्डप और पांच चौमुख हुए। घाम पार्श्वमें सहसफणा पार्श्वनाथ, दाहिनी और संभवनाथ (२ प्रतिमा, अन्य युक्त ) उत्तर दिशिकी मध्य देहरीमें शांतिनाथ, दक्षिणदिशिके भूयरेमें अनेक जिनबिंब तथा पश्चिमदिशिके चौमुखमें अनेक प्रतिमाएँ तथा पूर्वकी ओर एक चौमुख तथा आगे विस्तृत नलिनी एवं शत्रुञ्जयकी तरह ३२ पूतलियां स्थापित की। तीन तिलखा तोरणवाला यह जिनालय तो भागनयर-नोतनपुरमें बनवाया। तथा अन्य जो मन्दिर बने उनका विवरण बताया जाता है। भलशारणि गांवमें फूलझरी नदीके पास जिनालय व अंचलगच्छकी पौषधशाला बनाई । सोरठके राजकोट में भी राजड़ने यश स्थापित किया । वासुदेवकृष्णका प्रासाद मेरुशिखरसे स्पर्धावाला था। यादववंशी राजकुमर वीभोजी कुमार (भार्या कनकावती व पुत्र जीवणजी-- महिरामण) सहितके भावसे ये कार्य हुआ । कांडाबाण पाषाणका शिखर तथा पासमें उपा. श्रय बनवाया । कालावड़ेमें यति-आश्रम-उपाश्रय बनवाया, मांढिमें शिखर किया और पंचधार भोजनसे भूपेन्द्रको जिमाया। दोसौ गोठी जो मूढ थे वे सुज्ञानी श्रावक हुए। कांडाबाणि पाषाणसे एक पौषधशाला बनवाई । कच्छ देशमें ओसवालोंके माढा स्थानमें एक राजड़ चैत्य है और बड़ी प्रसिद्ध महिमा हैं । नागनयरके उत्तरदिशामें अन्न-पाणीकी परब खोली । कच्छके मार्गमें बिड़ी तट स्थानमें For Private And Personal Use Only
SR No.521710
Book TitleJain_Satyaprakash 1954 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1954
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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