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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपाध्याय विवेकसमुद्र विरचित नरवर्मचरित्र लेखक : श्रीयुत भंवरलालजी नाहटा विक्रमकी आठवीं शती संस्कृत भाषामें आगमों की टीका लिखनेका कार्य श्रीहरिभद्रसूरिजी से प्रारंभ हुआ पर चरित्रकाव्य दसवीं शती के प्रारंभ तक प्राकृत भाषामें ही लिखे जाते रहे । दसवीं शती के महान् ज्योतिर्धर विद्वान सिद्धर्षि ने ' उपमितिभवप्रपंचाकथा' नामक विश्वसाहित्य में अजोड ग्रंथरत्न रच कर संस्कृत में रूपक चरितकाव्य रचनेका प्रारंभ किया । फिर भी बारहवीं शती तकके अधिकांश चरितग्रंथ प्राकृतमें रचे जाते रहे। आचार्य हेमचंद्र - सूरिने ' त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित' लिखके संस्कृतमें चरितकाव्यों को लिखनेका मार्ग प्रशस्त कर दिया, फलतः तेरहवीं शती से चरितकाव्य संस्कृत में लिखे जाने लगे । खरतरगच्छके विद्वानोंने भी विशेषतः श्री जिनपतिसूरिजी के शिष्य जिनपाल, पूर्णभद्र और जिनेश्वरसूरिजीके शिष्य चंद्रतिलक, श्रीजिनरत्नसूरि, लक्ष्मीतिलक आदिने कई महाकाव्य रच कर जैन संस्कृत साहित्यका मुख उज्ज्वल किया । प्रस्तुत लेखमें जिनेश्वरसूरिजी के ही एक विद्वान शिष्य श्रीविवेकसमुद्र उपाध्यायके एक महाकाव्यका परिचय दिया जा रहा है । I उपाध्याय विवेकसमुद्रकी दीक्षा सं. १३०४ वैशाख शुक्ला १४ के दिन श्रीजिनेश्वरसूरिजी के करकमलों से हुई थी । आप श्रेष्ठिवर्य वाहडांगज श्रीबोहित्थके पुत्ररत्न थे, 'नरवर्म चरित्र' की प्रशस्ति में इन्होंने स्वयं इस बातका निर्देश किया है, यह ग्रंथ भी स्वपितु बोहित्यजीकी प्रार्थनासे ही निर्माण किया गया था । सं. १३२३ में द्वितीय ज्येष्ठ शुक्ला १० को जेसलमेर में श्रीजिनेश्वरसूरिजीने इन्हें वाचनाचार्य पदसे अलंकृत किया । सं. १३३९ मिती फाल्गुन शुक्ला ५ को जाबालिपुर से मंत्री पूर्णसिंह आदि द्वारा ५०० शकट सह निकाले हुए अर्बुदगिरि यात्री संघ में श्रीजिनप्रबोधसूरि व श्रीजिनरत्नसूरिजी आदिके साथ आप भी थे और शुक्ला १४ के दिन अर्बुदगिरिमंडन श्री आदिनाथ और नेमिनाथ प्रभुके दर्शन किये। ८ दिन तक वहीं नाना उत्सव होनेके पश्चात् संघके साथ जाबालिपुर पधारे । सं. १३४२ मिती वैशाख शुक्ला १० के दिन जालौर के श्रीमहावीर जिनालय में श्रीजिनचंद्रसूरिजीने आपश्रीको अभिषेक - उपाध्याय पदसे अलंकृत किया था । ' आपश्रीने आचार्य श्रीजिनरत्नसूरि, उपाध्याय लक्ष्मीतिलक व उपाध्याय अभयतिलक १ युगप्रधानाचार्य गुर्वावली - (सिघी जैन ग्रन्थमाला से प्रकाशमान ) For Private And Personal Use Only
SR No.521702
Book TitleJain_Satyaprakash 1953 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1953
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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