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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra જૈન દર્શન ५४ ] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [ : १८ जैन स्तोत्र संग्रह प्रथम भाग परिशिष्ट में श्वे. जैन स्तोत्रोंकी सूची दी गई है उसमें 64 महानन्द महानन्द " आद्यापदसे प्रारंभ होनेवाली चैत्यपरिपाटी स्तवन (लो. ४१ ) को विनयविजयजी रचित बतलाया गया है। पर वास्तवमें वह खरतरगच्छीय श्रीजिनकुशलसूरिके शिष्य गौतमरासके रचयिता उपाध्याय विनयप्रभकी रचित है । यहाँके महिमा भक्ति भंडारमें सं. १४३० की लिखित स्तोत्र संग्रहको प्रतिमें इसका स्पष्ट उल्लेख है, अंतके 'विनय' शब्द से मुनि चतुरविजयजीने विनयविजयजी रचित होनेका अनुमान किया प्रतीत होता है जो सही नहीं है । मुनिश्री सूचनानुसार वह जैन स्तोत्र संग्रहके द्वितीय भाग में प्रकाशित होनेवाली थी पर उसमें पार्श्वप्रभु सम्बन्धी स्तोत्रादिके आधिक्यतावश वह दी नहीं जा सकी, प्रतीत होता है । जैन सत्य प्रकाशके वर्ष ७ अंक १२ एवं वर्ष १२ पृ. ९६ में “ समरवि सरसति हंसला गामिणी " आय पदवाली २५ गाथाकी शत्रुंजय चैत्यपरिपाटी प्रकाशित हुई है । स्थानीय आचार्यशाखाके भंडार में प्राप्त ( ३ पत्र ) सं. १६६८ की प्रतिके अनुसार इस चैत्य परिपाटी विवाह लोके रचयिता महोपाध्याय “ विजयतिलक " हैं जिनके रचित शत्रुंजय - दंडग विचार गर्भित स्तवन बहुत प्रसिद्ध है । वे उ० विनयप्रभके शिष्य व जिनकुशलसूरिके प्रशिष्य थे । चैत्यपरिपाटी के अंतमें कर्त्ताने अपना नाम सूचक द्वयर्थक “ विजयवंता " शब्दका प्रयोग किया है। प्राप्त प्रतिमें " कृत विजयतिलकमहोपाध्यायैः " स्पष्ट लिखा है। I [ अनुसंधान पृष्ठ : १५ थी भालु ] વિકાસનકાળ આવક દર્શીન યેાગ દર્શન www.kobatirth.org યેાગવાસિષ્ઠે પહેલાં ત્રણ ગુણુસ્થાના પહેલી ત્રણ સ્થિતિ પહેલી ત્રણ ભૂમિકા સાત અજ્ઞાન ભૂમિકા બૌદ્ધ દર્શન પહેલી મે સ્થિતિ વિકાસ–કાળ પછીના કાળ તે આ સમસ્ત હરાઈ ભાગ્યશાળી થાઓ. એટલી અભિલાષા વ્યક્ત For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विहास-हाण गुगुस्थान ४-१४ સ્થિતિ ભૂમિકા ४–८ ४-५ સાત જ્ઞાન ભૂમિકા સ્થિતિ 3-$ ના પ્રમાણે યેાગ-કાળ છે. એ મેળવવા કરતા હું આ લેખ પૂર્ણ કર્યું
SR No.521695
Book TitleJain_Satyaprakash 1952 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1952
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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