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1 કતિપર્ય આવશ્યકીય સંશોધન मुनिना कृतः स्वाध्यायः" लिखा है। पर इसकी समकालीन (१७ वीं) लिखित प्रति यहाके भंडारोंमें उपलब्ध है जिसके अनुसार ये खरतरगच्छीय (हेमनंदनशि०) सिद्ध ही है। इसी प्रकार पृ. १२९ में मेघकुमार सज्झाय ख० श्रीसार रचित छपी है उसके अंतमें " इतिश्री वादीन्द्र श्रीपार्श्वचंद्रसूरीन्द्र विनेय श्रीसार मुनिराजेन कृतः स्वाध्यायः" लिखित दिया गया है। पता नहीं इसका आधार क्या है ?. इसी प्रकार पृ. २३४ में लक्ष्मीवल्लभ ( जिनका नाम राजकवि भी था) की उपदेश बतीसी छपी है। उसके अंतमें " इतिश्रीमन्नागपुरीय तपागच्छाचार्यश्रीरामचंद्रसूरिकृता" लिखा गया है। पर इसको समकालीन प्रति हमारे संग्रहमें है जिससे इसके रचयिता राजकवि ख० लक्ष्मीवल्लभ उपा० ही होना सिद्ध होता है। ___ इसी प्रकार श्री वा. मो. शाह ने धर्मसिंह ख० धर्मवर्द्धनकी बावनीको स्था. धर्मसिंह रचित मान ली थी जिसका संशोधन हम अपने “वा. मो. शाहकी एक महत्त्वपूर्ण भूल" नामक पूर्व प्रकाशित लेखमें कर चुके हैं।
आनंद काव्य महोदधि मौक्तिक पृ. ४ के परिशिष्टमें निम्नोक्त कृतियें छपी है । उनके स्वयिता वास्तवमें कविवर समयसुंदर हैं।
१. प्रसन्नचंद्र राजर्षि ग. ६ प्रसन्नचंद्र प्रणमुं तुमारे पाय,-रूपविजय २. अरणक मुनि ग. १० अरणिक मुनिवर चाल गोचरी, , ३. मेघकुमार ग. ५ धारणी मनावे मेघकुमार, -प्रीतिविमल
साराभाई नवाबको हमने खर० रुघपति कविके चौवीशी सवैये प्रकाशनार्थ भेजे थे । आपने मेरे लिखे रुघपति शब्दको संघपति समझ कर ११५१ स्तवन मंजुषामें उन सवैयोंके रचयिताको संघपति लिख दिया है। ___ विधानंदविजयजी प्रयोजित सं. २००२ में प्र० श्री “प्राचीनछंद संग्रह " ग्रन्थ छपा है। उसमें नवकार छंदका कर्ता लाभकुशल रचित लिखा है पर वह खरतरगच्छीय कुशललाभकी रचना है एवं अंतमें देशांतरी छंद राजकविका (लक्ष्मीवल्लभरचित) छपा है उसका रचयिता विपास कवि लिखा है। ये दोनों भूलें असावधानीसे हुई है। देखिये, रचनामें नाम स्पष्ट है
१. कुशललाम वाचक कहे, एकचित आराधतां विविध रीत वंछित लहे ॥१८॥ २. वर लछीवलभ सुतन पूरण प्रभु वैकुंठपूरी । __ प्रणमेवी पास कवि राज एम स्तविमो छंद देशांतरी ॥ ४६ ।।।
पहलेमें कुशललाभ वे ऊलटा नाम समझ कर लाभकुशल लिख दिया है, दूसरेमें 'पणमवि पास'को संधि छेदकी गलतीसे भूल हुई है।
जैन सत्य प्रकाश वर्ष १४ अंक ७ में प्रकाशित पार्श्वस्तोत्रको जयशेखरसूरि रचित लिखा गया है पर जैन स्तोत्र संदोह भा. २ पृ. के अनुसार उसके रचयिता लक्ष्मीसागरसूरि हैं।
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