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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कतिपय आवश्यकीय संशोधन ___ लेखक : श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा ग्रन्थ प्रकाशकों व संपादकोंकी असावधानी एवं अज्ञानताके कारण कभी कभी ग्रन्थके रचयिताके नाम एवं गच्छादिके सम्बन्धमें भी भद्दी भूलें हो जाती हैं जिनके अनुकरणमें अन्य लेखक भी उन्हें दुहराते हुए भूल परम्पराको बढ़ाते रहते हैं। अतः ऐसी भूलें जहाँ भी जिनके नजर आये उन पर संशोधनात्मक स्पष्टीकरण प्रकाशित कर देना आवश्यक होता है ताकि उनका संशोधन होकर भूलोका उन्मूलन हो जाय । प्रस्तुत लेखमें ऐसी ही कतिपय भूलोंका संशोधन उपस्थित किया है। इनके कुछ प्रकाशित ग्रन्थोंकी अप्रकाशित रचमा प्रशस्तियां 'अनेकांत में पूर्व में प्रकाशित कर चूका हूं। १. खरतरगच्छीय श्रीजिनकुशलसूरिके शिष्य महो० विजयप्रभजीका गौतम रास 'जैन साहित्यमें सुललित प्राचीन काव्य एवं सुप्रसिद्ध ग्रन्थ है । पचासों ग्रन्थोंमें यह प्रकाशित हो चुका है। जैन धर्मप्रसारक सभासे सार्थ भी प्रकाशित हो चुका है। पर इसके रचयिताके संबंधमें अब भी कहीं कहीं भद्दी भूल नजर आती है। किसी प्रकाशकने उसे उदयवंत रचित लिख मारा है तो कइयोंने विजयभद्र रचित बतलाया है । पर यह निर्विवाद सिद्ध है कि इसके रचयिता उ० विनयप्रभ है। हस्तलिखित सैंकड़ों प्रतिया हमारे अवलोकनमें आई जिनमें "विनयपहु उवज्झाय थुणिजै" स्पष्ट पाठ है। इसकी रचना सं. १४१२में गौतम गणधरके केवलज्ञानके दिन खंभातमें हुई थी। बीकानेरके महिमा भक्तिभंडारमें इसकी सं. १४३० की लिखित प्रति प्राप्त है उसमें भी यही पाठ है। 'खरतरगच्छ पट्टावली में भी इसके रचे जानेका सुस्पष्ट निर्देश पाया जाता है। पोछली कुछ प्रतियाके लेखकोंकी भूलके परिणाम खरूप “ विजयभद्र" नाम प्रसिद्धिमें आया है एवं प्रतकी एक गाथामें उदयवंत शब्द आता है। इसको कर्ताका सूचक मानकर कई व्यक्तियोंने उसे उदयवंत रचित घोषित कर दिया और आज तक वह भूल ज्यों की त्यों अनेक आवृत्तियों व ग्रन्थोंमें पाई जाती है जिसका संशोधन होना नितान्त आवश्यक है। कई भूलें ग्रन्थमें रचयिताके अपने गच्छ एवं गुरुपरम्पराके निर्देश न करनेके कारण हो जाती है । सम नामवाले व्यक्तियोंमें ऐसा होना स्वाभाविक ही है जिसके कुछ उदाहरण यहाँ दिये जाते हैं जैन हठीसिंह सरस्वती सभा, अहमदाबादसे " षटद्रव्यनय विचारादि प्रकरण संग्रह" नामक ग्रन्थ छपे हैं। उनके पृ. १०९ में प्रीति छत्तीसी, सहजकीर्ति रचित छपी है जिसके अंतमें संपादक या प्रकाशकने " इतिश्रीमन्नागपुरीय बृहत्तपागच्छीय वाचकवर सहजकीर्ति १ हाल ही में प्रकाशित हिन्दी जैन साहित्यका संक्षिप्त इतिहासके पृ. ६५ में भी इसकी पुनपत्ति की गई नजर आती है। For Private And Personal Use Only
SR No.521695
Book TitleJain_Satyaprakash 1952 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1952
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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