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સધતિ સામજી સધ
[ ७१ दिया । बीकानेरी श्रावक रुकनेके कथनको अमान्य कर सीरोहीवालों को साथ लेकर चुपचाप रवाना हो गये । ये लोग ३ कोश ही गये होंगे कि मुगल व काबुली लोगों द्वारा मार्ग रोक लिया गया। इधर संघके लोग आगे युद्ध लग जानेकी बातसे अज्ञात थे । खमीधाणा के रणक्षेत्र में पांच मुगल त्राताओं की फौजसे भिड़ंत हुई । साहसिक शिरोमणि संघवी नाथाके नेतृत्व में बीकानेर वणिक योद्धा वीरतापूर्वक भालोंसे युद्ध करने लगे । सारा संघ भयसे कांपते हुए इस संकटकालीन अवस्था में दादा गुरुको याद करने लगे। संघका उपकार करने के हेतु दादासाहब श्री जिनदत्तसूरिजीने अजमेर से आकर सानिध्य की । सद् गुरुने लालची मुगलों की मति फिरा दी, ऐसा चमत्कार हुआ कि संघ निरुपद्रव हो गया। गुरुदेवका सर्वत्र जयजयकार हुआ ।
बीकानेरी संघने द्रव्य भी बचाया व मुगलोंको भी हरा दिया। सारी सामग्री देवकरणके हाथ थी । साह भीतका पुत्र वितम बुद्धिशाली था । साह रांका, मांडण भंडारी आदि बीकानेर के बड़े बड़े अधिकारी थे । वहांसे समस्त संघके साथ प्रयाण किया ।
यह विशाल यात्रीसंघ तीर्थाधिराज शत्रुजयके निकट पहुंचा । हर्षित चित्तसे ऋषभदेवप्रभुके गुणगान करते हुए गिरिराजको मोतियोंसे वधाया । पालीताणा पहुंच कर ललित सरोवर के पास संघने उतारा किया । दीवाण - राजासे मिल कर, मनवांछित द्रव्य भेट कर एक मासके लिए शत्रुंजय कर मुक्त करवाया । सारा संघ वार्जित्र ध्वनिसे आकाशमंडलको गुंजायमान करता हुआ गिरिराजकी यात्रा के हेतु अग्रसर हुआ। वडलीकी पाजसे चढे, पहिले धवली परब, कलिकुण्ड पार्श्वनाथ, मार्गमें तलाईको दाहिने छोड़कर कवड़ यक्षके आगेसे गढके प्रतोलीद्वारमें प्रवेश किया । गजारूढ मरुदेवी माता, पांच प्रासाद, अर्बुद (अद् भुतविशाल ) आदीश्वर के दर्शन कर अनुपमसरके ऊपरकी पोलि जहांसे उभय पक्षमें प्रासाद पंक्तियांथी - दर्शन करते हुए तीर्थनायक ऋषभदेवके दरबार में पहुंचे । खरतरगच्छाधीश्वर श्रीजिनचंद्रसूरिजी आदि सबने परमेश्वरको वंदन किया । संघपतिके हर्षका पारावार न रहा, उसने सूर्यकुण्ड में स्नान कर उत्सवपूर्वक सतरहभेदी पूजा की, सारंगधर श्रावक विधिके जानकार थे। रायणवृक्षके नीचे आदीश्वरके चरण, पुण्डरीक गणधर, भरत बाहुबलि मुनिसुव्रतप्रभु विहरमान मंदिर, वस्तुपाल - तेजपाल प्रासाद में वंदनपूजन कर खरतरवसही प्रासादमें आये। जिसके बहुत से शिखर और प्रतिमाओं थी, सत्तरिसय जिनेश्वर, चार चउरी, नंदावर द्वीप इत्यादि विराजमान थे, देवविमानके सदृश यह उत्तुंग प्रासाद था । प्रतोलीद्वार पर वाघणिदेवीका स्थान, वट वृक्षके नीचे नागमोरदेव अदबुदके ऊपर खोडायारि प्रासादके दर्शन किये। वहां अमृत की तरह मीठे जलका अनुपम कुण्ड था ।
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