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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीकुशललाभ कृत संघपति सोमजी संघ चैत्यपरिपाटीका ऐतिहासिक सार लेखक :-श्रीयुत भंवरलालजी नाहटा श्रीजिनचंद्रसूरिजी तीर्थयात्राके हेतु विचरते हुए गुजरात पधारे। पाटणमें खरतरगच्छकी ख्याति प्रगट कर खंभातमें श्रीस्तंभन पार्श्वनाथकी यात्रा की। वहांसे राजनगर पधारे, श्रावकोंने विधिपूर्वक जिनचंद्रसूरिको वंदन किया। सूरिमहाराजने शत्रुजय गिरिराजका विस्तृत व्याख्यान किया जिसे सुन कर श्रावकोंके चित्तमें शत्रुजय-यात्राकी तीवाभिलाषा हुई । गुरु महाराजके सम्मुख शत्रुजय यात्राका विचार हो रहा था। प्राग्वाटवंशीय दोसी जागीनाथाके सुपुत्र द्वय-सोमजी,-शिवाने गुरुदेवसे संघनिकालेनका स्वमनोरथ करबद्ध होकर निवेदित किया। देश विदेशमें कुंकुमपत्रिकाएं भेज दी गई। मालवा, बीकानेर, सीरोही, सूरत, पाटण, राधनपुर, खंभात, जेसलमेर, जालोर और गुजरातादिका संघ एकत्र होकर मिला । सं. १६४४ मिती माघ शुक्ला १० रविवारके दिन संघने प्रयाण किया। सबसे आगे आचार्यप्रवर श्रीजिनचंद्रसूरिजी थे, पीछे संघपतिकी पालखी और दोनों तरफ दो पुत्र थे, बहुतसे वाजिंत्र बज रहे थे। समस्त संध सरखेजइ आया। देहरासरमें उभयकाल पूजा धर्मसाधना व दानपुण्य किया जाता था। ८४ गच्छका साधुसमुदाय यात्राके हेतु प्रेमपूर्वक आकर मिला । संघके साथ ७८० सिजवाले, २२० वहिलीयें, ३५० ऊंट व बहुतसी गाडियां थीं। भाट-भोजक सुयश वखानते थे । खरतरगच्छके ११२ साधु, ३३० महात्मा और २२० ऋषि और २५ आचार्य भिन्न गच्छोंके साधु-साध्वियें भी थी। बहुतसे श्रावक श्राविकाएं छरी पाळते हुए चलते थे । संघकी रक्षाके लिए २०० राजपूत घुड़सवार, २३२ बन्दूकधारी योद्धा आगे पीछे और उभय पक्षमें चल रहे थे। चार कोशकी लंबाईमें संघ चलता हुआ क्रमशः धोलका आया । संघका संगठन इस प्रकार था कि उसमें कहीं भी चोर प्रवेश नहीं कर पाता था। क्रमशः धंधूका पहुंचे। सं० सोमजीके ज्येष्ठ पुत्र धेरतनजी संघकी रक्षाके लिए फौजके साथ रातभर चौकीदारी करते थे। साधुओंको भावपूर्वक वहराया जाता था। ठहरनेके लिए तम्बू-डेरा तंगोटी व प्रकाशके लिए दीपक-चिराग आदिका पूरा प्रबंध था। धंधूकासे सारा संघ खमीधाणइ आया । शकुनीने अपने ज्ञानसे आगे युद्धकी संभावना बतलाई । संधपतिने दो दिन यहां ठहरनेका निश्चय कर सबको आगे जानेसे : निषेध कर For Private And Personal Use Only
SR No.521695
Book TitleJain_Satyaprakash 1952 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1952
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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