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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ ___ तीर्थके पश्चिमकी और उलखाझोलि, चेलण तलाई देख कर ऊतरते हुए उत्तरकी और सिद्धवड, जलवापी और जिनभुवनको नमस्कार कर १२ कोशकी प्रदिक्षणा दी। शत्रुजयनदी इन्द्रसुता है, भगवंतने इस तीर्थको उत्तम बतलाया है क्योंकि यहां अनंत सिद्ध हुए। इस प्रकार २१ दिनों तक यात्रा करके मनोरथ सफळ किया । ८४ गच्छके मुनिराजोंको आदरपूर्वक सन्तुष्ठ किये । चैत्र सुदि ५ को वड़ी पूजा की गई और संघके सम्मुख इन्द्रमाला पहिनी। इस अवसर पर जूनागढके स्वामी अमीखान अभिमानमें आकर प्रबल सेना एकत्र करके पालीतानाके चारों ओर (घेरा डाला ? ) पर पुण्यके बलसे सब संकट दूर हुआ.... __कवि कुशललाम कृत चैत्यपरिपाटी गा० ७५ तक आकर अपूर्ण रह जाती है, आगेका वर्णन तो पूर्ण प्रति मिलने पर ही संभव है। इसी संघके सहयात्री कवि गुणविनय कृत बीकानेर संघकी चैत्यपरिपाटी उपलब्ध है जिससे ज्ञात होता है शत्रुजय जाते हुए बीकानेरका संघ भी धवलकामें सामिल हुआ था। चैत्र वदि ५ के दिन गिरिराज पर संघने चढकर यात्रा की और वदि ८ के दिन सतरह भेदी पूजा हुई। वापस आते समय बीकानेरका संघ भी अहमदाबाद आया था। उपर्युक्त चैत्यपरिपाटी-संघ यात्रा-वर्णनमें कुछ महत्त्वपूर्ण बातोंका पता चलता है। खमीधाणेमें मुगलोंसे बीकानेरके नवाबादिके साथ युद्ध होनेकी घटना बडी रोमांचक है। उस समय इतने उपद्रव स्थान स्थान पर होते थे फिर भी लोगोंमें धार्मिक भक्तिभावना कितनी प्रबल थी ! इसीसे सब सिद्धि होती थी। अंतमें अमीखानके उपद्रवका उल्लेख हुआ है। आगेका वर्णन अपूर्ण रह गया है। ___ यदि किसी सजनको इसकी दूसरी पूरी प्रति प्राप्त हो तो हमें अवश्य सूचित करें, यही सादर अनुरोध है। [ अनुसंधान /24 पेत्रीय यातु] १. मटेश्वरना भूति ૭. ચામુંડરાય બસ્તી ૮. શ્રી પાર્શ્વનાથ બસ્તી, ૯. શિમેગા જિલ્લાનું મેલાગીની અંતર્ગત બ્રહ્મદેવના સ્તૂપની સાથે જૈન બસ્તી. - ૭૧ નં. ને ૧૯૫૧ ને એકટ પણ સને ૧૯૦૪ ના પ્રાચીન સ્મારક સંરક્ષણ અધિનિયમ અનુસાર બનાવવામાં આવ્યું. છે. આ બધાં મંદિરોને કેંદ્રીય સરકારે પિતાના અધિકારમાં લઈને તેને રાષ્ટ્રીય ઈમા રૂપે ઓળખવાની ઘોષણા કરી છે. આપણું મૂળભૂત હક્કો માટે જેનોએ શું કરવું જોઈએ એ વિશે શ્રીયુત મેહનલાલ ચોક્સીએ આ માસિકના ગતાંકમાં અને આ અંકમાં કેંદ્રસ્થ સંસ્થાની જરૂરિયાત વિશે જે સુચના કરી છે તે તરફ જેનોએ પોતાનું ધ્યાન દોરવું જોઈએ એમ અમારું માનવું છે. સંપાદક For Private And Personal Use Only
SR No.521695
Book TitleJain_Satyaprakash 1952 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1952
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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