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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीजगच्चन्द्रमूरिजीका सं. १२९९ का एक प्राचीन व्यवस्था-पत्र सं.० श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा अपने गच्छ-समुदायकी सुव्यवस्थाके लिये समय समय पर गच्छके नेता आचार्यों द्वारा व्यवस्थापत्र-मतपत्र-प्रचारित किये जाते हैं। ऐसे थोडेसे जो व्यवस्थापत्र अभीतक प्रकाशमें आये हैं, उन सबमें श्रीजिनप्रभसूरिजीका व्यवस्थापत्र' ही सबसे पुराना था। पर गत वर्ष हमें उससे भी प्राचीन व्यवस्थापत्र प्राप्त हुआ है जो अद्यावधि ज्ञात व्यवस्थापत्रोंमें सबसे पुराना होनेके साथ ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्त्वका है। प्रस्तुत पत्र तपागच्छके आदिम आचार्य श्रीजगच्चंद्रसूरि आदिके द्वारा प्रचारित किया गया है, इस लिए उसका महत्त्व बहुत अधिक है। तत्कालीन तपागच्छको व्यवस्थाके बारेमें यह अद्वितीय प्रकाश डालता है, साथ ही पाटणके तत्कालीन महाराजा, महामात्यके नाम-निर्देशके साथ आचार्य जगच्चन्द्रमूरिके समुदायके आचार्य एवं विद्वान मुनियोंके नाम-निर्देशके साथ साक्षि रूपसे अन्य आचार्यों एवं श्रावकोंका उल्लेख भी करता है, जो अन्यत्र दुर्लभ है । अतः इसके द्वारा कई नवीन ऐतिहासिक तथ्य प्रकाशमें आवेंगे। इसी दृष्टि से यह प्रकाशित किया जा रहा है । आशा है अन्य विद्वान इस पर विशेष प्रकाश डालेंगे एवं ऐसे अन्य पत्र जहां कहीं भी मिले उन्हें प्रकाशित करनेकी ओर पूरा लक्ष रखेंगे। __ अब मैं मूल व्यवस्था-पत्रकी नकल उद्धृत कर रहा हूं। इसकी २ पत्रको १७ वों शताब्दिकी लिखित प्रति उपलब्ध हुई है । मूल सहीवाला मतपत्र मिल जाय तो बहुत अच्छा हो । आशा है पुरातत्त्वान्वेषी विद्वान अनुसंधान करेंगे। व्यवस्थापत्र ॥ ० ॥ संवत् १२९९ वर्षे त्रयोदश्यां अयेह श्रीमदणहिल्लपाटके समस्तराजित महाराजाधिराज श्रीत्रिभुवनपालदेव-कल्याणदेव-विजयराज्ये तन्नियुक्त महामात्यदंड श्रीताते श्री श्रीकरणादि समस्तकरणादिसमुद्रव्यापारान् परिपंथयतित्येवं काले प्रवर्तमाने श्रीसंघादेशपत्रमभिलिख्यते यथा श्रीमदणहिल्लपाटके प्रतिष्ठित समस्त श्रीआचार्य संमस्त श्रावक प्रभृत्ति समस्त श्रीश्रमणसंघश्चैत्रवालगच्छीय देवभद्रगणिशिष्य जगचन्द्रसूरि श्रीविजयचन्द्रसूरि. प्रभति आचार्यान् पद्मचन्द्रगणिप्रभृति तपोधनांश्च पं. कुलचन्द्रगगि-अजिताभगणि प्रभृति परिवारसमन्वितान् सप्रसादं समादिशति यथा (१) यतिप्रतिष्ठव कर्तव्या श्रावकप्रतिष्ठा न प्रमाणीकार्या १ । (२) तथा श्रीदेवस्य पुरतो बलिनैवेद्यारात्रिकादीनि न निषेध्यानि २। १ जिनदत्तसूरिचरित्र, पूर्वार्द्ध, पृ. ४३२ । For Private And Personal Use Only
SR No.521649
Book TitleJain_Satyaprakash 1948 12 1949 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1949
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size13 MB
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