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२८४ ]
શ્રી; જૈન સત્ય પ્રકાશ
[ वर्ष १४
१ मरणसमाधिपयन्नेका उल्लेख नंदीसूत्र में आनेसे उसका समय ५ वीं शताब्दी के पूर्वका निश्चित है ।
२ स्वामी कीर्ति के पानुपेक्षा हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित है इस पर २-३ भाषा टीकाएं भी उपलब्ध हैं।
३ संस्कृत, कन्नड दि. अनुपेक्षा ग्रन्थों का उल्लेख उपर कर ही दिया है। शुभचन्द्रका समय कुछ पीछेका प्रतीत होता है । देखें प्रेमोजीका 'जैन साहित्य और इतिहास ' ग्रन्थ |
४ जयदेवरचित भावनासंधि जैनयुग वर्ष ४ पृ. ३१४ में व मधुसूदन मोदीका लेख भी उसी पत्रके पू. ४६९ में प्रकाशित है ।
५ तपा जयसोमकी भावना सज्झायके रचनेका महीना सूचि से चैत्र लिया गया है पर अमरकोषादिके अनुसार अषाड होना चाहिये ।
६ सकलचंद्रकी १२ मावनावेलि विवेचनसहित जैनधर्म प्रसारक समासे छप चुकी है। उसके परिशिष्ट में अमृतविजयरचित १२ भावना भी प्रकाशित है । अवान्तर ग्रन्थोंमें ज्ञानार्णव के आधार से रचित श्रीमद् देवचंद्रजी रचित ध्यानदीपिका चौपाइमें विस्तृत वर्णन है । एवं अगरचंद भैरोंदान सेठिया प्रकाशित जैन सिद्धांत बोलसंग्रह मा. ३ के पृ. ३९० में विस्तारसे विवरण दिया गया है।
७ मुनि रमणिकविजयजी सूचित भावनाप्रकरणकी दो ताडपत्रीय प्रवियें पाटणके भंडार में हैं जिनमें से एक में गा. १३२ है ।
८ भावनाकुलक पाटण भंडार में कई हैं । मुनिश्री सूचित गा. २४ वाला उनसे अभिन्न है तब तो वह प्राचीन है । मुनिश्रीने उसे १९ वीं के पूर्वार्द्धका बतलाया पर वह लेखनसमय ही संभव है । कुलक साहित्य का समय ८वीं से १७ वीं तक का है।
९ द्वादशानुपेक्षा -- आलूकृतका समय १८ वीं सदी अनुमान किया गया है पर वह १५ वीं १६ वीं शताब्दी का संभव है । १७ वींकी लिखिव तो प्रति भी उपलब्ध है ।
आलू दि. है या १० इसका निर्णय करना आवश्यक है । दि. भंडारमें भी इसकी प्रतिये उपलब्ध हैं ।
x देखें जैनधर्म प्रकाश में प्रकाशित मेरा लकसाहित्य सम्बन्धी दिख
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