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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ટાઈટલના બીજા પાનાથી ચાલુ ] मिलता है। अतः इनका समय भी सं.१६४० के लगमग निश्चित है। जैन गुर्जर कविओ' भाग १-३ में भी उल्लेख है ही। ___जैन गुर्जर कविओ भा. ३ से आपने २ रचनाओंका निर्देश किया है, पर उसी भागके पृ. ९७४, १२४८ में दो अन्य मौलिक रचनाओंका और उल्लेख है। मलीभांति अन्वेषण नहीं करनेके कारण उनको आपने छोड दिया है। उनमें पहली राजस्थानी और दसरी हिन्दी भाषाकी है। दोनोंके रचयिता खरतर गच्छीय प्रसिद्ध विद्वान हैं। उन दोनोंका परिचय नीचे दिया जाता है - (१) भावनासंधि-'जैन गुर्जर कविओ' मा.१, पृ.४९३ में भी इसका विवरण दिया गया है । खरतर गच्छीय प्रमोदमाणिक्य शिष्य उ. जयसोमने इसकी रचना की है । अपने समय में यह बहुत प्रसिद्ध रही है। हमारे संप्रहमें भी इसकी १०-१२ प्रतियां होंगी। अन्यत्र पचासों प्रतिये हमारे अवलोकनमें आई हैं। कई वर्षे पूर्व प्रकाशित एक ग्रन्थमें यह छप भी चुकी है। सं. १६४६ में बीकानेरमें श्रीजिनचन्द्रमरिजीके समय इसकी रचना हुई है। 'जैन गुर्जर कविओ' भा.१में सं.१६७६ दिया था, पर प्रशस्तिमें जिनचन्द्रमरिजीके राज्यका स्पष्ट निर्देश होनेसे भा.३ में हमने संशोधन करवा दिया है। इसकी पद्यसंख्या ७३ और भाषा राजस्थानी है। (२) र. लक्ष्मीवल्लभके भावनाविलास' की प्रति हमारे संग्रहमें है। ५२ हिन्दी पधोमें सं. १७२७ पोष वदि १० को इसकी रचना हुई है। लेखोमाटे आमन्त्रण सिलहट ( आसाम ) थी भाई अगरचंदजी नाहटा लखी जणावे छे के मथुराना ब्रज साहित्य मंडल तरफथी श्री कन्हैयालाल पोदारना सन्मान माटे 'पोद्दार अभिनन्दन ग्रन्थ ' प्रकाशित करवानी योजना करी छे। एना राजस्थान विभागना सम्पादकोमा मारु पण नाम छे। जैन मुनिवरो तेमज विद्वानोने विनती छे के राजस्थानमां जैन धर्म, राजस्थानी जैन साहित्य, राजस्थाननां कलापूर्ण जैन मंदिरो तेमज राजस्थानी भाषा, साहित्य, इतिहास, पुरातत्त्व, कला अने संस्कृति वगेरे विषयना लेखो अथवा तो मथुरा अने ब्रजमंडलना जैन सम्बन्ध विषयक लेखो नीचेना ठेकाणे मोकलीने आभारी करेश्रीयुत नरोत्तमदासजी स्वामी M.A.,c/o डुगर कोलेज, बीकानेर e qવી મદ૬ ૨૫ પૃ. ૫. સ. શ્રી. રામવિજયજીના સદુપદેશથી તપગચ્છ જૈન સંધ, શાન્તાક્રુઝ ! ર૧) પૂ. મુ માં શ્રી સુબુદ્ધિવિજયજીના સદુપદેશથી શ્રી આત્મ-કમલ જ્ઞાનમદિર, ૬ દર ૧૫) પૂ. ૫. મશ્રી. શાંતિવિજયજીના સકું પદેશથી ઉજ મફ્રઈની મેડી, પાલીતાણું. For Private And Personal Use Only
SR No.521640
Book TitleJain_Satyaprakash 1948 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1948
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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