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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧૦૦ 1 . શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [वर्ष १७ अकबर प्रतिबोधक के रूप में स्मरण किया है और अकबर प्रतिबोधका समय सं. १६४९ है, अतः ३६ संभव नहीं, न उस समय जिनसिंहमूरिको आचार्यपद ही मिला था, जिसका प्रशस्ति में उल्लेख है। ३. कल्याणसागर का समय अभी शंकित है। देसाईने उनका अंचलगच्छीय कल्याणसागरसूरि होना अनुमान किया है, पर नोंध में सूरि शब्द न होने से अन्य भी संभव है। प्रति देख के निर्णय करना आवश्यक है ! ४. जयसोमको जिनकुशलना शिष्य लिखना भी सही नहीं । वे तो उनकी परम्परा में हुए हैं। जयसोम के विद्वान ग्रन्थकार शिष्य गुणविनय ही थे अतः हमारे परामर्श अनुसार हो देसाई ने गुणविनय की कृतियों में इस रचनाको सम्मिलित किया है। ५. आपने जैन गुर्जर कविओका उल्लेख तो समुच्चय रूपमें किया है, पर वास्तवमें आपने उसका तीसरा भाग ही देखा है जैसा कि सलोकाके लेख में हुआ है। इसमें भी जैन गुर्जर कविओ के भा. १-२ का उल्लेख नहीं कर पाये। वे ये है : १. सुमतिरचित अगडदत्त रास सं. १६०१ कार्तिक शुकला ११ रवि । २. थानसागर रचित,, , स.१६८५ आसोज वदि ५ खंभात । ३. शांतिसौभाग्य रचित अगडदत्त ऋषि चौपई सं. १७८७ पाटण । इनके अतिरिक्त हमारे संग्रहमें एक अन्य अगडदत्त रास की अपूर्ण प्रति है जिसके प्रारंभिक पद्य इस प्रकार हैं: "सिद्ध रिद्ध निद्ध दायका महावीर जिणराज । तास तणा चरणा नमी चरित रच्यु सुखदाय।१। चरण कमल सतगुरु तणा, प्रणमी बे कर जोड । अगडदत्त कुमारना, वर्णन करु मद मोडि । २। ६. जैन गुर्जर कविओ भा. २, पृ. ६४० के अनुसार जैन विद्याशाला अहमदाबाद से प्रकाशित शोलोपदेशमाला के पृ. ३८२ में भी अगडदत्तकाचरित्र प्रकाशित हो चुका है। ७. श्रीविनयभक्तिसुन्दरचरणग्रन्थमाला की ओर से संस्कृत में अगडदत्तचरित्र प्रकाशित है, जिसके ३३४ पद्य हैं। एक आवश्यक सूचना फागु, विवाहला, संवाद एवं सिलोको सम्बन्धी साहित्य पर पूर्ण प्रकाश डालनेपर भी नित्य नवीन अनेकों रचनाओंका पता चलता रहता है । कतिपय नवीन प्राप्त फागु काव्य एवं विवाहलोंका तो परिचय फिर कभी दिया जायगा। इसी प्रकारके संधिकाव्य जैन भाषा साहित्यमें बहुत अधिक मिलते हैं, जिनके सम्बन्धमें मेरा एक महत्त्वपूर्ण लेख 'राजस्थानी' के नवीन अंक (प्रथमांक) में “ अपभ्रंश भाषा के संधिकाव्य और उनकी परम्परा" शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। For Private And Personal Use Only
SR No.521639
Book TitleJain_Satyaprakash 1948 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1948
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size13 MB
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