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અગડદત્તચરિત્ર સુખ'ધી ચાર અન્ય રાસ
भवणवणं मझे आमुरभावम्मि वट्टमाणेणं । नियहणणमणेण जे दूमिया ते वि खामेमि ॥ २८ ॥ वंतररूवेण मए केली किलभावओ य जं दुक्खं । जीवाणं संजय तंपि य तिविहेण खामेमि ॥ २९ ॥ जोइसिएस गएणं विसयामिसमोहिएण मूढेणं । जो को विकओ दुहिओ पाणी मे तं पिखामि ॥ ३० ॥ पर रिद्धिमच्छ रेण लोहनिबुडेण मोहवसगेणं । अभियोगएण दुक्खं जाण कयं ते वि खामेमि ॥ ३१ ॥ इय चउगइभावना जे के वि य पाणिणो मए वहिया । दुक्खे वा संविया ते खामेमो अहं सव्वे ॥ ३२ ॥ सव्वे खमंतु मज्झं अहं पि तेसिं खमेमि सव्वेसिं । जं के अवरद्धं वेरं चऊण मज्झत्था ॥ ३३ ॥ नय कोइ मज्झ वेसो सयणो वा एत्थ जीवलोगंमि । itraruneral एक्को हं निम्ममो निचो ॥ ३४ ॥ जिणसिद्धा सरणं मे साहू धम्मो य मंगलं परमं । जिणनवकारी पवरो कम्मक्खयकारणं होऊ ।। ३५ ॥ इय खामणा उ एसा चउगइमावनयाण जीवाणं । मा विसुद्धीए महं कम्मक्खयकारणं होउ ।। ३६ ॥
આ ખામણાકુલક' પોઢણુના શ્રી હેમચન્દ્રાચાર્ય જ્ઞાનન્દિરની ( વાડીપાર્શ્વનાથ ભંડારની) તાડપત્રીય પ્રતિ ઉપરથી ઉતારીને અહીં આપ્યું છે.
अगडदत्तचरित्र सम्बन्धी चार अन्य रास
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लेखक - श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा
" जैन सत्य प्रकाश" के क्रमांक १४३ में प्रो. हीरालाल कापडिया के " धम्मिल अने अगदत्तना चरित्रनी सामग्री " शीर्षक लेख में अगडदत्तचरित्र सम्बन्धी गुजराती रचनाओं का उलेख जैन गुर्जर कविओ भा, ३ के आधारसे किया है। उसके सम्बन्ध में यहां विशेष ज्ञातव्य प्रकाश में लाया जा रहा है ।
१. उल्लिखित सभी रासों को गुजराती भाषा का बतलाना उचित नही है; इसमें से कई राजस्थानी भाषा के भी हैं । जैन गुर्जर कविओ में केवल गुजराती ही नहीं, पर गुजराती, हीन्दी और राजस्थानी तीनों भाषाओंकी जैन रचनाओं का समावेश है, यद्यपि नामकरण गुजराती प्रधान होने व संकलनकर्ता के गुजराती होने के कारण 'गुर्जर कविओ' रख दिया है ।
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२. श्रीसुन्दर के अगडदत्तप्रबन्ध का समय १६६६ ही है, १६३६ होने की आशंका जैन गुर्जर कविओ में की गई वह अविचारित है, क्योंकि रास के आदिमें जिनचंद्रसूरिको