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અંક ૧૧]
ભારત કે બાહર પ્રાકૃત કા પ્રચાર
| ३२५ से लेख मिले हैं। इनमें से कुछ लेख लकडी के कलाकार टुकडों पर हैं और शायद इसी लिये इन लेखों में इन का निर्देश " कीलमुद्रा " शब्द से किया गया है । ये कीलमुद्राएं देश के राजा की ओर से सरकारी कर्मचारियों के नाम लिखी गई हैं । इन में किसी मुकदमे अथवा अन्य सरकारी कार्य की चर्चा की गई है।
इन के ऊपर उसी
कुछ लेख लकडीके चौरस टुकडों पर हैं। इनका नाम " प्रवनक" (प्रमाण, प्रापण, प्रपन्न ? ) है। ये एक प्रकार की रसीदें या प्रमाणपत्र है जिन्हें अधिकारी व्यक्ति अपने पास रखता था । अनधिकारो पुरुष से इनके पाठ की रक्षा करने के लिये परिमाण का दूसरा टुकडा रख कर उन पर रस्सी लपेट दी जाती थी । फिर रस्सी के सिरे ऊपर वाले टूकडे पर रख कर उनको मिट्टी से ढांप दिया जाता था और मिट्टी पर मोहर लगा दी जाती थी ।
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इस प्रकार के कुल ७६४ लेख मिले हैं जिनकी रोमन अक्षरों में प्रतिलिपि और अंग्रेजी भाषा में अनुवाद प्रकाशित हो चूके है । इस प्राकृत का अंग्रेजी में व्याकरण भी बना है परन्तु वह मेरे देखने में नहीं आया । इनकी प्राप्ति की कथा भी बडी रोचक है" ।
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नीचे इस प्राकृत का नमूना दिया जाता है । इन लेखों के देखनेसे पाश्चात्य विद्वानों उत्साह, धैर्य और परिश्रमका कुछ अनुमान हो सकता है । जैन मुनियों के लिये प्राकृत के ये लेख अत्यन्त उपयोगी और रोचक सिद्ध होंगे। वे इनके पाठ और अर्थ में कुछ सुधार भी कर सकेंगे ।
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किया जाता था। हां, इस में संयुक्त वर्ण बहुत थे । अभारतीय वर्णों को प्रकट करने के लिये अक्षरों की आकृति में फेरफार कर दिया जाता था, अथवा बिंदु, रेखा आदि लगा दी जाती थी, परन्तु इनही लेखों में एक लेख (नं. ५२३ ) संस्कृत में है । इस में स्वरोंका दीर्घत्व तथा ऋॠवर्ण प्रकट किये गये हैं ।
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Kharosthi Inscriptions discovered by Sir Aurel Stein in Chinese Turkestan. Oxford. Part 1 1920, Part II 1927, Part III 1929.
T. Burrow: A translation of the Kharoṣṭhi Documents from Chinese Turkestan. London, 1940.
T. Burrow: Language of the Kharosthi Documents from Chinese Turkestan.
Sir Aurel Stein : ( 1 ) Ancient Khotan, 2 Vols (2) Serindia, 5 vols. ( 3 ) Innermost Asia, 3 vols, Oxford, 1907, 1921, 1928.
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