SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२६] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [વર્ષ ૧૨ हर्षकी बात है कि आपके विद्वान शिष्योंने अभि तक उस प्रवृत्तिको जारी रखी है और प्रति वर्ष कोई न कोई ऐतिहासिक ग्रन्थ प्रकाशित करते ही रहते हैं। आ. विजयेन्द्रसूरिजी तो इतिहासके प्रकांड विद्वान हैं ही, पर शान्तमूर्ति मुनि जयंतविजयजीकी प्रवृत्ति भी बडी ही प्रशंसनीय है। आबू तीर्थके सम्बन्धमें आपने जो महत्त्वपूर्ण कार्य किया है वह चिरस्मरणीय रहेगा। आपके ब्राह्मणवाडा, हम्मीरगढ़, अचलगढ ग्रन्थ भी सुन्दर हैं पर यहाँ उनकी अधिक चर्याका अवकाश नहीं है। संवत १९९८में आपका एक और महत्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाशित हुआ था जिसका नाम 'शंखेश्वर महातीर्थ' है। अभी तक इस ढंगके विविध स्तोत्र स्तवन सह तीर्थके इतिहास संबंधी कोई भी ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हुए हैं। वास्तवमें यह ग्रन्थ आपके बहुत परिश्रमका फल है। विविध स्थानोंसे प्राप्त छोटी से छोटी कृतिको भी संग्रह करते रहना वडे धीरज एवं खोजका काम है। यपि शंखेश्वर तीर्थ संबंधी स्तवनादि रचनाओंका आपने बहुत बड़ा संग्रह किया है पर जैन साहित्य इतना विशाल है कि उसका पार पाना किसी भी एक व्यक्तिसे तो क्या-कई सेंकडो व्यक्तिओंसे भी संभव नहीं है। जहां कहींका भंडार टटोलिये, कुछ न कुछ नवीन सामग्री मिलती ही रहती है। अतः मेरे नम्र मतानुसार, अन्वेषण करने पर, शंखेश्वर संबंधी कमसे कम इतनी ही रचनायें और भी मिल जायगी। पूज्य मुनिश्रीने जब मुझे उक्त शंखेश्वर महातीर्थ पुस्तक भेजी थी मैंने कई सूचनाओंके साथ यह भी सूचन किया था कि शंखेश्वरके स्तवनादि मेरे संग्रहमें एवं मेरी जानकारीमें और भी बहुत से हैं। मुनिश्रीने उनका द्वितीयावृत्तिमें उपयोग करनेका सूचन किया भी स्मरण है। उसके पश्चात् 'जैन सत्य प्रकाश के क्रमांक १२३में श्रीमती सुभद्राबहन (शारलोटे क्राउझे) का 'कंईक शंखेश्वर साहित्य लेख प्रकाशित हुआ अवलोकनमें आया, अत: अपने संग्रहालयसे विशेष जानकारी प्रकाशित करनेका विचार हुआ। पर उस समय सीलहट होनेसे सामग्री मेरे पास न थी अतः वैसा न हो सका। सोलहटसे आने पर उसे देखकर प्रस्तुत लेख तैयार किया। मुझे प्राप्त स्तवनादिकी संख्या ४० के लगभग है अतः उनके प्रकाशनकी तो यहां संभावनना नहीं सोच कर प्रस्तुत लेखमें केवल उनकी सूची देकर ही संतोष करना पड़ा है। मेरे संग्रहकी भी अभी १२ हजार प्रतियों की ही सूची हो पाई है, अभी ४-५ हजार प्रतियोंकी सूची बननी बाकी है। और अन्य भंडारोंकी तो बात ही जाने दीजिये । अतः सहज हीमें जितने ज्ञात हो सके उन्हीं स्तवनों का निर्देश कर दिया हैं। अभी और बहुत साहित्य मिलेगा । आशा है अन्य मुनिगण भो खोज शोधको आगे बढायेंगे। For Private And Personal Use Only
SR No.521631
Book TitleJain_Satyaprakash 1947 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1947
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy