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चितौडके प्राचीन जैन श्वेताम्बर मन्दिर लेखकः-श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा
चितौडके दूर्गके सम्बन्धमें जैन साहित्य में समय समय पर अनेक उल्लेख अवलोकन में आये थे और यहांके जैन मन्दिरोंके सम्बन्धमें जयहेम रचित चैव्यपरिपाटी भो 'जैनयुग' वर्ष ३ पृष्ठ ५४ में प्रकाशित देखने में आई एवं अन्य एक चैव्यपरिपोटी गत श्रावण मासमें पालनपुर भंडारका अवलोकन करते समय प्राप्त हुई । इसकी प्राप्तिके अनन्तर कईवार चितौsh जैन मंन्दिरोंके सम्बन्ध में प्रकाश डालने की इच्छा हुई और कुछ नोध भी लिखली गई थी पर विशेष अन्वेषण के लिये वह अभी तक प्रकाशमें नहीं आ सकी थी। सौम्यग्यवश इस बार हिन्दी साहित्य सम्मेलनके उदयपुर अधिवेशन में जानेका मौका मिला और केसरिया जोकी यात्रा के साथ साथ चितौडकी यात्रा का सुयोग प्राप्त हुआ । समयाभाव से केवल १ दिन ही वहां रहना हुआ, फिर भी वहांके जैन अवशेषोंको देखकर चित्तमें बडा आनंद एवं विषाद हुआ | आनंद तो वहां प्राचीन जैन गौरवका अनुभव करके हुआ और खेद वहांकी वर्त - मान दशाको देखकर | वहांके मन्दिरकी कोरणी बडी सुन्दर है, पर अधिकांश मन्दिर तूटे हुए पडे हैं। आश्चर्यका विषय है कि मूर्ति एक भी मंदिरमें नहीं है। श्री विजयनीतिसूरिजी के उपदेशसे जीर्णोद्वार प्रारंभ हुआ है, पर जीर्णोद्धारके साथ नया काम भी प्रारंभ कर देनेके कारण अबतक प्राचीन सभी मंदिरोंका उद्धार हो जाना चहिए था, उसके बदले सातवीस देहरीके मंदिर का जीर्णोद्धार हो पाया है। इस मंदिर में बाहर से मूर्तियें लाकर प्रतिष्ठित कर दी गई। इसके पश्चात् खुदाई द्वारा कई मूर्तियें भूमिमेंसे प्राप्त हुई हैं वे भी इसी मंदिरमें रखी हुई हैं । मेरे नम्र मतानुसार किसी योग्य निरीक्षक के तत्वावधान में आसपासके स्थानोंका सूक्ष्म निरीक्षण किया जाय तो और भी बहुत सी मूर्ति यें यहांके भूमिगृहों आदि से प्राप्त होगी, क्योंकी मुगलोंके आक्रमण के समय मूर्तिकी सुरक्षा के लिये संघने यहीं कहीं उन्हें दाट रखी होगी ।
प्राप्त चैत्यपरिपाटी १६ वीं शताब्दीकी है उसमें यहां ३२ जैन मंदिर एवं ८-९ हजार मूर्ति यें होनेका उल्लेख है। प्रथम चैत्यपरिपाटी प्राप्त नहीं है, द्वितीयकी प्रति अशुद्ध प्राप्त हुई है अतः कुछ अशुद्धियें रह जाना संभव है, फिर भी सरसरी तौरसे यहां के जैनमंदिरो के सम्बन्धसे पाठकों का ध्यान आकर्षित करनेके लिये सारगर्भित सूची नीचे दी जा रही है।
१ इसकी रचना सं. १५६६ के लगभग हुई थी।
इसकी रचना सं. १५७३ फा. व. में हर्षप्रमोद के शि, गयंदीने की है ।
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