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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उ. मेघविजयजीका एक उपलब्ध ग्रंथ-वृत्तमौक्तिक लेखक:-श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा महाकवि उ. श्री. मेघविजयजी १८वीं शतीके चमकते सितारे हैं। आपकी प्रतिभा सर्वतोमुखी थी। व्याकरण, काव्य, ज्योतिष, सामुदिक, रमल, यंत्र, आध्यात्म, न्याय आदि विषयोंमें आपकी निर्बाध गति थी। और इन विषयोंके पांडित्यके परिचायक आपके ग्रंथ प्रत्येक विषयके मिलते हैं । काव्यप्रतिभा तो आपकी अजोड थी; मेघदूत, नैषध, माघ, किरातकी पादपूर्तिरूप काव्य एवं सप्तसंधान काव्य आपके असाधारण प्राण्डित्यके परिचायक हैं । आपके उपलब्ध समस्त ग्रंथोंका परिचय हाल हीमें सिंघी ग्रंथमालासे प्रकाखित दिग्विजय महाकाव्यकी प्रस्तावनामें प्रकाशित है। इनके अतिरिक्त न्यायका एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ मणिपरीक्षाकी उपलब्धि मुझे बीकानेरके बृहत्ज्ञानभंडारसे हुई थी जिसका परिचय मैंने अपने "उ. मेघविजयजीके दो नवीन ग्रंथ * " शीर्षक लेखमें (प्र. जैन सिद्धान्त भास्कर वर्ष १०, कि. २) दिया था। उपधानमालारोपणमहोत्सवके प्रसंग पर कोटेमें पू. मणिसागरसूरिजीके शिष्य विनयसागरजीके पास उ. मेघविजयजीका एक और नवीन ग्रंथ अवलोकनमें आया। प्रस्तुत लेखमें उसीका संक्षिप्त परिचय करवाया जा रहा है। प्रस्तुत ग्रन्थ छंदःशास्त्र विषयक है और उसका नाम वृत्तमौक्तिक है । उद्दिष्ट नष्टका इसमें वर्णन किया गया है। विष को स्पष्ट करनेके लिये करयंत्र भी दिये गये हैं। यह ग्रन्थ सं. १७५५ में मु. भानुविजयके अध्ययनार्थ रचा गया है। इसकी एवं 'मणिपरीक्षा' की लिपि एक ही व्यक्तिकी प्रतीत होती है। छोटे छोटे अक्षरों में लिखा हुआ है। ग्रन्थका आधंत भाग इस प्रकार है। वृत्तमौक्तिक पत्र १० आदि-प्रणम्य फणिना नम्यं सम्यक् श्रीपार्श्वमीश्वरम् । उद्दिष्टादिषु सूत्रार्थं कुर्वे श्रीवृत्तमौक्तिके ॥ १ ॥ अथ वृत्तमौक्तिके उद्दिष्टं नष्टं वर्णतो मात्रातों वा विवृण्यते । दत्वा पूर्वयुगांकान् लघोरुपरिगस्य नूभयतः । अंत्यांके गुरुशीर्षस्थितान् विभुं पदेऽथांकांश्च ॥ उद्धरितैश्च तथाकैः मात्रोद्दिष्टं विजानीयात् । इत्यादि * दो ग्रंथमेंसे एक 'शब्दचन्द्रिका' तो प्रकाशित हो चुकि है एवं इसकी प्रतियें अन्यत्र भी प्राप्त है, अतः उसके स्थान पर 'वृत्तमौक्तिक' समझना चाहिए । For Private And Personal Use Only
SR No.521629
Book TitleJain_Satyaprakash 1947 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1947
Total Pages52
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size24 MB
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