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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अहम् ॥ अखिल भारतवर्षीय जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मुनिसम्मेलन संस्थापित श्री जैनधर्म सत्यप्रकाशक समिति- मासिक मुखपत्र श्री जैन सत्य प्रकाश जेशिंगभाईकी वाडी : घीकांटारोड : अमदावाद (गुजरात) वर्ष ११ ॥ वि स. २००२ : पानि. स. २४७२ : ६. स. १६४७ || क्रमांक मंक १०-११|| सपा-१ वह ३ : सुनुवाई : jusोगट १५॥१३०-१३१ ॥श्रीविघ्नहरस्तोत्रम् ॥ कर्ता-पू. आचार्य महाराज श्रीविजयपद्मसूरिजी [आर्याच्छंदः] वंदिय वोरजिणिंद, गुरुवरसिरिणेमिसूरिचरणकयं ॥ सिरिविग्घहरत्युत्तं, पणेमि पुज्जप्पसायाओ ॥१॥ तिहयणविक्खायमहं, अचिंतमाहप्पमणहसिद्धियरं ॥ सिरिसिद्धचक्कमणिसं, थुगुंतु भव्वा ! अविग्घटुं ॥२॥ सिरिसिद्धचक्क ! भंते ! तुह निश्चलबुद्धिविहियसरणस्स ॥ महकल्लाणं होही, नियमा बहुमाणकलियस्स तं विण्णवेमि हरिसा, मवे भवे साहणा मिलउ तुझं ॥ अनियाणा विहिजोगा, निहिलिटुपयाणकप्पयरू ॥४॥ सिरिथमणपास ! सया, तुह नाम रोगविग्घनासयरं ॥ संपत्तिकरी पूया, समाहिबोहिप्पयं सरणं निम्मलचारित्तयरं, तुह वयणंभोयदंसणं हिअयं ॥ पणिवाओ दुक्खहरो, थवणं घणकम्मणिज्जरणं ॥६॥ तेसिं जम्मं सहलं, अचंति पमोयपुण्णचित्ता जे ॥ सुमरंति पलोएंति, त्थुणंति वंदति पइदियह ॥७॥ पवरधुलेवानयरे, विहियनिवासं पणदुभवपासं ॥ नासियकम्मविलासं, नाभिसुयं पुअणिज्जपयं ॥८॥ भवजलहिजाणवत्त, महप्पहावणियं पसण्णमुहं ॥ भविरक्खमहागोवं, सुभावणालद्वमुत्तिपयं ॥९॥ सुमरंताण जणाणं, पूअंताणं थवं कुणंताणं ॥ पासंताणमणुदिणं, मंगलमाला हविज्ज परा। ॥१०॥ विग्घाइमसुहकम्मो-दएण तब्बंधओ मलिणभावी ॥ तविलओ जिणथवणा-सुहभावविसिट्टसामत्था ॥११॥ ॥५॥ For Private And Personal Use Only
SR No.521623
Book TitleJain_Satyaprakash 1946 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1946
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size18 MB
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