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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रोसारोपाध्यायका शाखाभेद लेखक-श्रीयुत अगर चंदजी नाहटा, सिलहट 'श्री जैन सत्य प्रकाश के क्रमांक १२५ में श्रीमती शार्लोटे क्राऊझेने खरतरगच्छीय श्रीसारोप ध्यायरचित फलोधीपार्श्वनाथ स्तवनको प्रकाशित करते हुए श्रीसारोपाध्यायके शाखाभेदके सम्बन्धमें विशेष जानकारी प्राप्त करनेकी जिज्ञासा प्रगट की है। अतः आपके उस लेखके सम्बन्धमें मैं यहां संक्षेपमें अपने संशोधन प्रकाशित कर रहा हूं। १ श्रीसारकी ९वीं कृतिका नाम जयविनय चौ., यु. जि. सूरि में प्रेसकी गलतीसे छपा है। उसका शुद नाम जयविजय चौपई है। २ जिनचंद्रसूरिजीके शिष्य विनयप्रभ एवं उनके शिष्य विजयतिलक सूरि नहीं थे। विनयप्रभका पद महोपाध्याय एवं विजयतिलकका पद उपाध्याय था। क्षेमकीर्ति स्थान पर क्षेत्रकीर्ति अशुद्ध छपा है। ३ हेमनन्दन रत्नहर्षके शिष्य नहीं, लघु गुरुभ्राता थे, जैसा कि हमने यु. जिनचंद्र सूरि पुस्तकमें बतलाया है। श्रीसारीय शाखाभेदका समय सं. १७०० ठीक नहीं है; यथासंभव वह दूहाके कुछ वर्ष बाद होगा। ५ श्रीसारीय शाखाके अलग हनेका कारण विशेष संभव श्रीसारजीके कई सैद्धान्तिक मन्तव्यों में मतभेद का होना है। आपकी २ सम्झायोंसे उन सैदान्तिक मतभेदोंका संकेत पाया जाता है। ६ आपके नामसे शाखाभेद बतलाया गया है पर वास्तवमें वह विचारभेद मात्र संभव है. जिसके कारण उनका रंगविजय शाग्वासे (भिन्न प्ररूपगा करनेके कारण) सम्बन्ध विच्छेद हुआ। पर मेरे नम्र मतानुसार पट्टावलीकारोंने इसे शाखाभेद बतलाया है वह छोटी बातका बडा रूप देना प्रतीत होता है, क्योंकि श्रीसारकी शाखाके पृथक् रूपका एक भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है। शाखाभेद होता तो उनके साधु एवं श्रावक अलग होते, कोई नया आचार्य स्थापित किया जाता या वे स्वयं आचार्य बनते, मतभेदका साहित्य मिलता, कुछ परम्परा भी मिलतो । पर ऐसी कोई बात नहीं दिशाई देती। ७ इस शाखाके उत्पादक श्रीसार और कवि श्रीसार अभिन्न ही थे । अभी कई आवश्यक साधन प्राप्त न होने के कारण कई विषयों पर विचार नहीं किया जा सका; भविष्य में बीकानेर जानेपर आवश्यक प्रतीत हुआ तो अधिक प्रकाश डाला जायगा। For Private And Personal Use Only
SR No.521621
Book TitleJain_Satyaprakash 1946 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1946
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size18 MB
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