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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ ' [ વર્ષ ૧૧ __ " साधुथी अनेरो कुपात्र छे' (भ्रम-विध्वंसन, पृष्ठ ७९ ।)
यानी तेरहपन्थी साधुओंकी रायसे वास्तवमें साधु वही है, जो दया, दान आ.द पुण्यकर्ममें पापका निरूपण करता है । यह है तेरहपन्थियों के धार्मिक सिद्धान्तोंका एक विचारणीय ज्वलन्त उदाहरण । अथवा अन्य धर्मोंसे यह तेरहपन्थी धर्म उतना ही प्रतिकूल है जैसे धर्मसे पाप, प्रकाशसे अन्धकार और अग्निसे जल । इस तरहका मत किसी भी देश, समाज या राष्ट्र के लिये सर्वथा अहितकर है, क्योंकि जिस किसी भी धर्ममें निर्दयता और स्वार्थान्धताके भाव भरे हों वह धर्म उस समाज, देश और राष्ट्रके उत्थानका प्रतिबन्धक होकर पतनका कारण हो जाता है । अतः प्रत्येक समाजसेवक धर्मशील नरेशोंसे मेरा अनुरोध है कि वे ऐसे समाज-देश राष्ट्र-अहितकर अनार्य धर्मोंका यथासम्भव शीघ्र समूलोच्छेदन करनेके लिये चेष्टा करें। आश्चर्य तो इस बात का है कि मानवसंस्कृतिका महाघातक व निर्दयताका अनुपम चित्रपट, यह " तेरह-पन्य-धर्म" भगवान् महावीरके नामसे खड़ा हुआ है । जिस महापुरुषका शुभ जन्म पीड़ितोंको रक्षाके लिये कहा जाता है, या जिन्हें दयाका अवतार सारी दुनिया मानती है, अथवा जिनके जोवन का लक्ष्य दया और अहिंसाका प्रचार था, उन्हीं महापुरुषके नाम पर ऐसे निन्दनीय पापमय धर्मका चलना, क्या पवित्र धर्मवृक्षकी जड़में कुठाराघात नहीं है ?
इस बातकी साक्षी विश्वका इतिहास दे रहा है कि मारे जाते प्राणियोंकी रक्षाके लिये ही भगवान् महावीर और बुद्धने अपने विशाल राज्यको छोड़कर संन्यासको अंगीकार किया था । किन्तु खेद है कि विशेषदर्शी तेरह-पन्थी लोग भगवानके इन दया, दानादि परम पवित्र मानवोचित कार्योंको पाप बतला रहे हैं अतः इससे बढ़कर अधर्म, असत्य तथा विश्ववन्य महापुरुषका अपमान क्या हो सकता है ?
केवल दया, दान ही के ऊपर इनका यह कुत्सित विचार नहीं है, किन्तु मानवोचित आत्मकल्याण कारक “ मूर्तिपूजा, जिनमन्दिरनिर्माण, धर्मशालाविधान' आदि सर्वजनोपकारी कार्यों पर इनका कुठाराघात हुआ है। हम हैरान है कि जब ये ३२ आगमोंको मानते हैं, तो फिर उन आगमोंमें कहे हुये धर्मोको क्यों नहीं मानते ? क्योंकि प्रकृतिने मानवसमाजके लिये अन्य प्राणियों की अपेक्षा विशेष बुद्धि रखी है, अतः प्रत्येक कर्तव्य पर मननशील होकर विचार करना मनुष्यमात्रका कर्तव्य है।
तेरहपन्थियोंका कहना है कि भगवानने ३२ आगमोंमें कहीं भी जैन मन्दिर बनानेको नहीं कहा । हम पूछते हैं कि यह मिथ्या अपलाप कहांतक टिक सकेगो? आप पक्षपातको छोडकर विचारिये, हम आपके माने हुये आगमों का ही प्रमाण देते हैं, प्रमाण यह है कि
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