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४२] નિર્દાન્ત ડિડિમ
[५७ "व्याधि अनेक कोदादिक सुनीने, तिन उपर वैद् चलाईने आवे । अणुकम्पा आणी साजो कीधो, गोली चूर्ण दे रोग गमावे ॥” ढाल १, पृष्ठ ४
भावार्थ:-कोढ़ आदि व्याधिको सुनकर रोगीके लिये वैद्य आये और वह वैद्य सदय होकर उस रोगीको गोली किंवा चूर्ण ( दवा ) देकर रोगको मिटा देवे तो यह दया सावध है, अर्थात् ऐसी दयाको तेरहपन्थी पापपूर्ण समझते हैं । और भी देखिये"गृहस्थने भेषज औषध देईने, अनेक उपाय कर जीव बचायो । यह संसार तणो उपकार कियामें मुक्तिरो मारग मूढ बतायो, वेषधारी भूलारो निर्णय कोजे ॥" ढाल ८, पृ. २८ ।
भावार्थः-औषध आदिको देकर अथवा किसी अन्य उपायसे गृहस्थों का जीवन बचाना संसार बढानेवाला उपकार है, मूढ लोग इस उपकारको मुक्तिका मार्ग बतलाते हैं, अतः हे वेषधारी साधुओ ! आप अपनी भूलोंका निर्णय करें । और"गृहस्थ भूलो उजाड़ बनमें, अटवीने बले उजड़ जावे, तिणने मार्ग बतायने घर पहुंचावे, वले थाके हुवो तो कांधे बैठावे, ओ उपकार संसार तणो छे' ॥ ढाल ११, पृष्ठ ५३ ।
भावार्थः-यदि कोई गृहस्थ उजाड़ वन (घोर जंगल )में रास्ता भूलकर उलटे रास्तेमें चलने लगे, उस कुपथगामी पथिकको ठीक मार्ग बतलाकर घर पहुंचानः और यदि वह थका हो तो उसे अपने कन्धे पर बैठा लेना संसारका उपकार है, अर्थात् इस उपकारसे संसारमें चक्कर खाना पडता है, अतः यह भी तेरहपन्थियोंके मन्तव्यानुसार पाप ही है।
श्रीयुत भिक्खूजी स्वामीके ' अनुकम्पा-ढाल 'का कुछ अंशः नमूनेके तौरपर ऊपर दिया गया है, और उसका भावार्थ भी उसीके नीचे दिया गया है, जिससे सर्वसाधारणको उनके अनुकम्पा विषयक विचार भलीभांतो ज्ञात हो जाय । हमारी समझसे श्रीयुत भिक्खूजी स्वामीके “ अनुकम्पा ढाल "को यदि निर्दयताका अप्रतिम प्रतीक और अमानुषताका अनुपम दृश्य कहा जाय तो कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं ।
श्रीयुत भिक्खुजीको चौथो पाटपर श्रीजीतमलजी स्वामी हुए । आपका दूसरा नाम श्री ‘जयाचार्य 'भी तेरहपन्थियोंमें प्रसिद्ध है । श्रीजीतमलजीने श्रीभिक्खुस्वामीकी उक्त उत्सूत्रप्ररूपणाको यथामति खूब बढाचढाकर " भ्रम-विध्वंसन " नामकी एक पुस्तिका लिखी है। इस धर्म-विरुद्ध-प्ररूपणा-युक्त ग्रन्थका समूलोच्छेदन करनेके लिये जैनागम-प्रभाव-पूर्ण तर्क-युक्तिसे भरपूर " निर्धान्त-तत्त्वालोक' नामका मेरा एक ही निबन्ध काफी है । . श्रीयुत भिक्खुजी और श्रीजीतमल जी की पुस्तकों से स्पष्टतया प्रतीत होता है कि तेरहपन्थी साधुओं के अतिरिक्त संसारके सभी प्राणी कुपात्र हैं, और उनका कहना है कि तेरहपन्थी साधुओं के अलावा सभी अन्य साधु वेषधारी, गमार और हिंसामें धर्म मानने वाले हैं, जैसे
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