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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५ ११ એક અલભ્ય મહાકાવ્ય [ २१ ५, ४१, ४२, तथा ५७ से ६० पत्र नहीं है। आदिके ५५ श्लोकोंके न होनेसे इसका प्रारंभिक अंश नहीं दिया जा सकता, किन्तु प्रत्येक सर्गका अन्तिम अंश और ग्रन्थकर्ताकी अन्त्य प्रशस्ति देनेके साथ साथ क्रपशः महाकाव्यका संक्षिप्त सार भी पाठकोंकी जानकारीके लिए दिया जाता है। इति श्रीमत्तपागगभट्टारकपरंपरापुरन्दर श्री श्री श्री श्री श्री श्रीहोरविजयसूरिसार्वभौमशिशुपंडित श्रीरत्नकुशलविरचिते महामंत्री चक्रवर्ती-चतुरनरपुरोवर्ति-महामंत्रिमुकुटमणि प्रतापतरणि महामंत्री साह श्रीखीमसीभाग्योदये महाकाव्ये नगरवंशजन्मभूम्यादिवर्णनः प्रथमः सर्गः ॥ १॥ इति श्रीमत्तपागच्छाधिराजभट्टारक श्री ५ श्रीहीरविजयामूरिसार्वभौमशिष्यमहाकवि पंडित. रत्नकुशलविरचिते मंत्रिचक्र चक्रवर्ति-चतुरनरपुरोवर्ति-साह श्रीखीमसीभाग्योदये महाकाव्ये स्वमप्रभावजन्मोत्सवलेखशालादिवर्गनो द्वितीयसर्गः ॥ २ ॥ इति श्रीमत्त मागणे गच्छाधिराज भट्टारकचक्रशक श्रीहरिविजय पूरोन्द्रशिशुगगि श्री आणंदकुशल पंडित श्रीरत्तकुशलकविविरतिते मंत्रिचकवर्ति-चतुरनर पुरोवर्ति साह श्री खीमसीभाग्याभ्युदयमहाकाव्ये शरीरावयवाणिग्रहणादिवर्णनस्तृतोयसर्गः ॥ ३ ॥ इति श्रीमत्तपागच्छाधिराज भट्टारककोटि कोटिकोटीर श्री ५ श्रीहरिविजयसूरिसार्वभौमशिशु गणि श्रीआणंदकुशल पंडित श्रीरत्नकुशलविरचिते मंत्रिचक्रचक्रवर्ति चतुरनरपुरोवर्त्ति साह श्रीखीमसीभाग्योदये महाकाव्ये प्रणमत्पृथ्वीपतिकोटिकोटिसंघटितपदकमल महाराजाधिराज श्रीजगन्नाथरणस्तंभदुर्गवंशमंत्रिगुणश्रवणादिव्यावर्णनो विविधार्थसार्थसमर्थश्चतुर्थः सर्गः ॥ ४ ॥ इति श्रीमत्तपागच्छाधिराज भट्टारक प्रभु श्रीहरिविजयसूरिसार्वभौमशिष्य पंडित श्रीरत्नकुशलविरचिते चतुरनरचक्र पर्ति सकलदानिजनपुरोवर्ति साह श्रीखीमसीभाग्योदये महाकाव्ये स्वामिप्रसादप्रसाददानरात्रिप्रमुखवर्णनः पंचमः सर्गः ॥ ५ ॥ इति श्रीमत्तपाधिराज भट्टारक श्रीहीरविजयसूरिसार्वभौमशिशु पंडित श्रीरत्नकुशलविरचिते मंत्रिचक्रवर्ति साह श्रीखीमसीभाग्योदये महाकाव्ये स्वामिदर्शनप्रभावमंत्रिपदमहोत्सवादिव्यावर्णनः षष्टः सर्गः ॥ ६ ॥ ___इति श्रीतपागन्छाधिराज भट्टारक श्री ५ श्रोहीरविजय पूरिशिष्य पंडित श्रीरत्नकुशलविरचिते चतुरनरचक्र चक्रवर्ति साह श्रीखोमसीभाग्याभ्युदये महाकाव्येऽपरनाम्नि पुण्यप्रकाशनाम्नि महाकाव्ये दानवर्गनो नाम सप्तमः सर्गः ॥ ७ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.521613
Book TitleJain_Satyaprakash 1945 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1945
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size18 MB
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