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'संगीत अने जैन साहित्य के विषयमें कुछ विशेष बातें
लेखकः-श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा 'संगीत अने जैन साहित्य' शीर्षक लेख 'श्री जैन सत्य प्रकाश 'के गत ८ वें अंकों छपा है उसमें प्रो. हीरालालजी कापडियाने संगीत संबंधी जैन उल्लेखौका निर्देश किया है। इस | सम्बन्धमें जो विशेष बातें मेरी जानकारीमें हैं नीचे दी जाती हैं
(१) इस सम्बन्धमें २ लेख पहले भी प्रकाशित हो चुके हैं: १-'भारतीय संगीतनु ऐतिहासिक अवलोकन' लेखक-अध्यापक नारायण मोरेश्वर खरे, प्रकाशित 'पुरातत्त्व । वर्ष १ अंक ३, वर्ष २ अंक १ के पृ. २९ से ३५ तक जैन संगीत साहित्यको चर्चा की है। २-'कुछ जैन ग्रन्थों में संगीत चर्चा' लेखक-वी. राघवन् एम, ए., पीएच. डी. प्रकाशक-'जैन सिद्धान्त भास्कर' भा. ७, किं. १ ।
(२) संगीत विषयक एक अन्य उपयोगी दिगम्बरीय जैन ग्रंथ "संगीत समयसार त्रिवेन्द्रम् संस्कृत सिरिज त्रावणकोरसे प्रकाशित है । इसके रचयिता पार्श्वदेव हैं। इस ग्रंथका विशेष परिचय 'जैन सिद्धान्त भास्कर' के भा. ९ अं. २ भा. १० अं. १ में प्रकाशित है।
(३) सुधाकलशरचित संगीतोपनिषद्सार की ४ प्रतियें बीकानेर स्टेटकी अनूप संस्कृत लायब्रेरीमें विद्यमान हैं, जिनके आधारसे इसका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-इस प्रथमें ६ अध्याय हैं जिनके नाम व श्लोकों की संख्या क्रमशः नीचे दी जाती है
१ गीतप्रकाशनो प्रथमोध्याय, श्लोक ९४. २ प्रस्तरादिसोपाश्रयतालप्रकाशनो नाम द्वितीयोध्याय, श्लोक ९८. ३ गणस्वररागादिप्रकाशप्रकाशनो तृतीयोध्याय, श्लोक १२७. ४ चतुर्विधवाद्यप्रकाशनो नाम चतुर्थोध्याय, श्लोक ९९. ५ नृत्यांगोपांगप्रत्यंगप्रकाशनो पंचमोध्याय, श्लोक १४१ R aisi
६ नृत्यपद्धतिप्रकाश नाम षष्ठोध्याय, श्लोक १५२. 2. इस ग्रंथकी प्रशस्तिमें ही मूल संगीतोपनिषद् सं. १३८० में रचने का उल्ले व है। मूल प्रति अभी मेरे अवलोकनमें नहीं आई। किसी सजनको प्राप्त हो तो उसका परिचय प्रकाशित करें।
(४) अन्य कई जैन विद्वान भी संगीतज्ञ हुए हैं, पर उन्होंने ग्रंथ नहीं बनाये, जिनमें नरचंद्रसूरिजीके संगीतज्ञ होनेका उल्लेख उपर्युक 'संगीतोपनिषद्सार ' में हो पाया जाता है। उपकेशगच्छप्रबंधसे ज्ञात होता है कि देवगुप्तसूरि वीणावादनमें बडे ही आसक्त थे । श्रीसंघ के निषेध करने पर भी अपनी संगीतप्रियताके कारण उसे न छोड सके इसी लिये अंतमें अपने पद पर कक्कसूरिको स्थापित किया, स्वयं पद त्याग कर लाट देशमें चले गये ।
अभी थोडे वर्ष पहले बीकानेरके कई यति संगीतके विशेषज्ञ माने जाते थे । उनके बनाये हुए रागरागिणीके पद आज भी जैनेतर संगीतज्ञ भी बडे प्रेमसे गाते हैं। जिनसमुद्रसूरि आदिने रचित रागमाला भी उपलब्ध है । समयसुंदरजीने जिनचन्द्रसूरिंगीतमें ३६ रागिणीके नामोंका समावेश किया है. व अन्य एक स्तवनमें ४४ रागोंका नामनिर्देश किया है।
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