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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७२ ] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ ३२ अंश, ५ कला उत्तर और देशान्तर ७६ अंश, १७ कला पूर्व है। जिले को भी कांगड़ा कहते हैं, यद्यपि अब जिलेका दफतर कांगडेसे ११ धर्मशाला नामक स्थान में है । [ वर्ष १० नगरके नाम से मील की दूरी पर पंजाबका पूर्वी भाग पहाडी प्रदेश है । प्राचीन कालमें यह तीन राज्यों में विभक्त था(१) सिन्धु और जिहलम नदी के मध्यवर्ती काश्मीर तथा उसके अधीन छोटी २ रियासतें; (२) जिहलम और रावी मध्यवर्ती द्विगर्त, दुर्गर या डोगर जिसमें जम्मू और इतर छोटी २ रियासतें शामिल थीं । (३) रावी और सतलुजके मध्यवर्ती त्रिगर्त जिसमें कांगडा और दूसरी छोटी २ रियासतें शामिल थीं । अंग्रेजों के आने से पहले यह भूभाग भारतकी प्राचीन शासन-पद्धति और संस्कृतिका एक नमूना था । 1 एक समय त्रिगर्तके अंदर पहाडी प्रदेशके अतिरिक्त जालंधर, दोआब तथा सतलुज नदी के पूर्व सरहिंद तककी भूमि शामिल थी । तब त्रिगर्त और जालंधर समानार्थ थे जैसा कि हेमचन्द्राचार्यने अपने अभिधानचिन्तामणिमें कहा है जालन्धरास्त्रिगर्ताः स्युः । ( काण्ड ४, श्लो० २४ ) मैदानी भागकी राजधानी जालंधर नगर था, और पहाडी भागकी कांगडा | कहते हैं कि कांगडेको राजा सुशर्मचन्द्रने बसाया था जो पहले मुलतानका राजा था । इसने महाभारतमें दुर्योधनकी ओर से विराटनगर पर चढ़ाई की थी, लेकिन इस युद्ध में हार कर वह त्रिगर्तकी ओर भाग गया और वहां एक नगर बसाया । उसने अपने नामकी स्मृति में नगरका नाम सुशर्मपुर रखा । यह चन्द्रवंशी था और इसके उत्तरवर्ती राजाओंके नामके साथ चन्द्र शब्द मिलता है । कांगडेका मूल नाम सुशर्मपुर था और इसका यह नाम वैद्यनाथप्रशस्ति में पाया जाता है । विज्ञप्ति त्रिवेणिमें भी लिखा है कि कांगडेकी आदिनाथ भगवान् की मूर्ति को भगवान् नेमिनाथके समयमें राजा सुशर्मने स्थापित किया था । कांगडेका प्राचीन नाम भोमकोट भी मिलता है । नगरको भीमनगर कहते थे । वास्तव में कांगडा तो किलेका नाम है इसी लिये जनतामें अक्सर कोट कांगडा कहा जाता है। इसका दूसरा नाम नगरकोट है जो किला और नगर दोनोंके लिये व्यवहृत होता था । कांगडे के इर्दगिर्द के प्रदेशको कटौच भी कहते थे । For Private And Personal Use Only कांगडा शब्दका प्रयोग मुगल बादशाहोंके समय से होने लगा है और यह कोट और नगर दोनोंको प्रकट करता है । इसका पूरा रूप "कानगढ" माना जाता है जिसका अर्थ
SR No.521611
Book TitleJain_Satyaprakash 1945 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1945
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size18 MB
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