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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८) ઉપકેશગ૭–પટ્ટાવલી . [१५ दर्शनदर्शनपट्ट, (६६) सिद्धसूरि जब लिनों । आदिनाथको पूज्य, प्रतिष्ठापन जिन किनो ॥ वसुवेद० ॥२२॥ रसऋषिपट्टारूढ, (६७) कक्कसूरि तपधारिय । तिन किय गच्छप्रबंध, सकल साधुन सुखकारिय ॥ (६८) देवगुप्तमरिसु पट्ट, घटवसु बुद्धिवारिधि । (६९) सिद्धम्ररि मुनिराज,पट्ट वडभाग रागनिधि ॥ वसुवेद० ॥२३॥ मुनिनभपट्टारूढ, (७०) कक्कमूरि बुद्धिसागर । इतिविनाशनकरन, शरनभयहरनयनामर ॥ (७१) देवगुप्तमरिसु पट्ट, ऋषिरसासु जानिय । स्वरलोचनपट्ट (७२) सिद्धसरि, दुःखमोचन मांनीय ॥ वसुवेद०॥२४॥ द्वीपदेवपट्ट (७३) कक्कमूरि, जपतपधारिय । (७४) देवगुप्तसूरिसु पट्ट, ऋषिवेद विचारिय ॥ तालुत्रिलोचनवदन, (७५) सिद्धमूरि पट मानहु । (७६) कक्कमूरि गुनभूरि, पट्ट मुनिरस पहिचानहु ॥ वसुवेद० ॥२५॥ (७७) देवगुप्तमरिसु पट्ट, पुनि मुनिमुनि मन्निय । ऋषिवसुपट्टारूढ, (७८) सिद्धमूरि चित अनिय ॥ तरुनिधिपट्टप्रविष्ट, (७९) कक्कसरि चित लावहु । दिग्गजनभपट्ट, (८०) देवगुप्तसूरी गुन गावहु ॥ वसुवेद० ॥२६॥ सिद्धिअवनिपट्ट (८१) सिद्धमुरि, संतनकुलभूषन । भूधरभुजपट (८२) ककमरि, पुरनतपपूषन । विधिलोचनगुन (८३) देवगुप्तमूरि पटमंडन । पावनपूज्यप्रताप, भविजनभयखंडन ॥ वसुदेव (८४) संख्य जिणपट्टअवराजत शुभ जिनधर्मधर । सचियायचरणसेवननिरत, सिद्धसरि श्रीपूज्यवर ॥२७॥ दोहा-सोरठा सिद्धसरि श्रीपूज्यवर, कोमलगच्छाधीश । विरची यह पट्टावली, जासु वचनघर शीस ॥१॥ जोनर या पट्टावली, पढह सुनहि चित धार। सो पावत संसारमें, शीघ्र पदारथ चार ॥२॥ गनियत बहु ग्रंथ महीं, वक्र गतीतै अंक । यामे तो ऋजु रीततै,गुनिगन गनो निशंक ॥३॥ चैत्रशुक्लतियासदिन, चंदनंदरसव्योम (१९६०)। लिखी यह पदावली, वत्सर वासर भोमः ॥ ४ ॥ ॥ इति संपूर्णः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.521610
Book TitleJain_Satyaprakash 1945 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1945
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size19 MB
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