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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५] - - શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [वर्ष १० वेदवेदपट्ट (४४) देवगुप्तसूरि दुःखहर्ता । स्वोपज्ञा टीका सुग्रन्थ, नवपद पर कर्ता ॥ वारिधिबांणसुपट्ट, (४५) सिद्धरि सिद्धिधर्ता । सागररसपट (४६) कक्कसूरि, मुदमंगलभर्ता ॥ वसुवेद० ॥१५॥ हरिभुजमुनिपट्ट, (४७) देवगुप्तसरि गुरु ज्ञानिय । बरणसिद्धिपट (४८) सिद्धमूरि, बहुबुद्धिनिधानिय ॥ नीरधिनिधिपट (४९) कक्कमूरि, जानिय गुनखानिय । तास चरण चित लाय, नाम नित स्वमुख वखानिय ॥ बसुवेद० ॥१६॥ (५०) देवगुप्तसूरिसु पट्ट, पंचासत लिनो । तब भैंसा निज भक्त, सप्त लख धन व्यय किलो। तात कोटिनकोट, द्रव्य ताको गुरु दिनो । सरशशिपट्टारूढ, (५१) सिद्धमूरि पुन चिनो ॥ वसुवेद० ॥१७॥ (५२) कक्कसूरि बावन्न, पट्टपूजित जब धारे । नृपवच हेमाचार्य, शिष्य निर्दयी निकारे । (५३) देवगुप्तमरिसु पट्ट, तेपन्न विराजै । लछन धन निज त्याग, साधु साधन सब साजै ।। वसुवेद० ॥१८॥ बांणवेदपट (५४) सिद्धसरि, पूरनगुनपुंजहुँ । बाणबाणपट (५५) कक्कमरि, कीरतकी कुंजहुँ । जिन किय कोट मरोट, प्रगट अत्यंत सुसोभित । (५६) देवगुप्तरिम, पत्रिरसपट्ट अलोभित ॥ वसुवेद० ॥१९॥ सायकमुनिपट्ट, (५७) सिद्धसूरि शरनागतत्राता । (५८) ककसूरि शरसिद्धिपट्ट, गुनज्ञानविधाता ॥ (५९) देवगुप्तसूरिसु पट्ट, इषुनिधि सिद्धिदाता । रसनभपट्टारूढ, (६०) सिद्धसूरि जगख्याता ॥ वसुवेद० ॥२०॥ ऋतुविधुपट्टारूढ, (६१) कक्कसूरि जिनमंडन । (६२) देवगुप्तसरिसु पट्ट, रसभुज अघखंडन ॥ रागरांमपट्ट (६३) सिद्धसूरि, पूरनगुनवन्तहुं । शास्त्रवेदपट (६४) कक्कमरि, जपतपजसमन्तहु ॥ वसुवेद० ॥२१॥ (६५) देवगुप्तसूरिनु, पट्ट रसशर शुभ धारिउ । तीर्थाटन कर देश, लाटि भक्तनको तारिउ । For Private And Personal Use Only
SR No.521610
Book TitleJain_Satyaprakash 1945 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1945
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size19 MB
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