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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१२ ] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [ વર્ષ હું महावीर वर्धमान थे।" बडे आश्चर्यको वात है कि महावीरको आपने जैनधर्मके संस्थापक बिना आधार मान लिया । आपका यह लिखना आपकी आगे लिखी हुई इस पंक्ति द्वारा खंडित होजाता है कि-"आजकल जैनी उनकी और उनके गुरु पारसनाथकी मूर्तियां पूजते हैं "। एक स्थान पर तो भगवान महावीरको आप जैनधर्मके संस्थापक लिखते हैं और दूसरे स्थान पर उनके गुरु पारसनाथका पूजा जाना सिद्ध करते हैं । फिर यह प्रश्न हम उन्हींकी बुद्धि पर छोडते हैं कि जैनधर्मके प्रवर्तक महावीर थे या यह धर्म उनसे पूर्वकालसे प्रचलित है। ऐसा जान पडता है कि माथुर सा. ने जैन धर्मका इतिहास लिखनेमें आवश्यक खोज नहीं की। यदि डा. ईश्वरीप्रसादकृत “न्यु हिस्टरी आफ इंडिया"को आप देखनेका कष्ट करते तो ऐसी बात लिखनेका साहस कभी नहीं करते। जैनधर्म चौवीस तीर्थंकरोंमें विश्वास रखता है और भगवान महावीर जैनियोंके चोचीसवें तीर्थंकर थे, उनसे पूर्व तेईस तीर्थकर और हो चुके हैं। भगवान पार्श्वनाथ तेइसवें तीर्थकर होकर एक ऐतिहासिक पुरुष हुए हैं, जो महावीरसे २५० वर्ष पूर्व हुए थे। प्रसिद्ध इतिहास लेखकोंने यह बात प्रमाणित कर दी है कि भगवान पार्श्वनाथ ईसासे पूर्व प्रायः आठवी शताब्दीमें हुए थे और उन्हीं द्वारा प्रचलित जैनधर्ममें भगवान महावीरने कुछ सुधारों द्वारा नई जान फूंको थी। जैनधर्म बौद्धधर्मसे प्राचीन धर्म है, वैदोंमें भी 'जिन' व 'अर्हन् ' शब्दोंका प्रयोग पाया जाता है जिसमे सिद्ध है कि जनधर्म वेदांके कालसे प्रचलित है। वेदोंमें भगवान ऋषभदेवके विषयमें कई स्थानों पर विवेचन मिलता है जो जैनधर्भके वर्तमान युगके प्रथम तीर्थकर माने जाते हैं, लेकिन इतिहासकी दृष्टिसे उनके कालका निर्णय अभी हो नहीं पाया है। वर्तमान युग खोजका युग है और मनुष्य सत्यताका पूजारी होने के नाते अंध विश्वासों पर श्रद्धा नहीं रखसकता, उसे तो प्रमाण चाहिये। कुछ वर्षों पूर्व येही इतिहास लेखक महावीरको ही जैनधर्मका आदि प्रवर्तक मानते थे परन्तु ऐतिहासिक खोजोंके बाद उन्हींकी यह मानता झूठ सिद्ध हो चुकी है । ऐतिहासिक खोजोंके क्रममें शनैः शनः यह बात सिद्ध हो रही है कि महावीरसे पूर्व जैन धर्म था, उनसे पूर्व जैन धर्मके तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ हुए थे। भारतवर्षके ही नहीं वरन् पाश्चात्य इतिहासज्ञोंने भी यह बात स्वीकार कर ली है । इतिहासकी खोज करनेवाले और भी आगे बढ रहे हैं और आगे यह भी सिद्ध कर दिया है कि पाश्वनाथ के पूर्व जैनियों के बावीसवें तीर्थंकर नेमिनाथ और हिन्दुओंके अवतार श्रीकृष्ण समकालीन व परस्पर संबंधी थे। धीरे धीरे यह भी प्रमाणित हो जावेगा कि नेमिनाथ के पूर्व जो तीर्थकर हुए हैं यह जैनधर्मको मान्यताके अनुसार सत्य है, परन्तु इसके लिये अभी समयकी आवश्यकता है और यह सब बात भविष्यके गर्भमें हैं। परन्तु मनुष्यकी बुद्धि द्वारा जो जो बातें प्रमाणित होती जा रही हैं उनसे माथुर सा. किस प्रकार अनभिज्ञ रहे यह वात बड़े आश्चर्यकी है। For Private And Personal Use Only
SR No.521600
Book TitleJain_Satyaprakash 1944 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1944
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size17 MB
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