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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋषभस्तवनंको टीकामें पारसी भाषानुशासनके उद्धरण लेखक-डा. बनारसीदासजी जैन M. A. Ph. D. सं० १९८४ में मुनि जिनविजयजीने श्रीरत्नप्रभसूरिकृत " फारसी भाषामां ऋषभदेवस्तवन " प्रकाशित किया था । इसमें कुल ११ छंद हैं । पहली दो गाथा, ३-८ दोहा, ९ चतुष्पदी, १० संदिग्ध, ११ इन्द्रवजा । मुनि जिनविजय को कह स्तवन स्त्र० श्री कान्तिविजयजी के भंडार में एक पत्र पर पंचपाठी आकर में लिखा हुआ मिला था, अर्थात् पत्र के मध्य में मूल स्तवन, और ऊपर नीचे तथा दोनों पावों में संस्कृत टीका थी । स्तवन के अन्त में "पं० लावग्यसमुद्रगणि शिष्य उदयसमुद्रगणि लिखितं । छ । छ" और टीका के अन्त में "पं० लावण्यसमुद्रगणि नंजाराग्रामे " लिखा है । ऐसा प्रतीत होता है कि मूल स्तवन की प्रतिलिपि उदयसमुद्रने को, और उस पर टोका उन के गुरु लावग्यसमुदने लिखी । पत्र पर लिपिकाल नहीं दिया है, इससे मुनिजी उदयसमुद्रका समय निर्धारित नहीं कर सके। हां अक्षरों की आकृति के आधार पर यह विक्रम की सतरहवों शताब्दी के पीछे का नहीं हो सकता । श्रीयुत मोहनलाल दलीचंद देशाई अपने “जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास के पारा ९७६ में खरतरगच्छोय उदयसमुद्र का सत्ताकाल सं० १७२८ लिखते हैं। कदाचित् यह फारसी ऋषभस्तवन इन्हीं का लिपिकृत हो । इस स्तवनकी भाषा शुद्ध साहित्यिक फारसी नहीं। टीकाकार के मतानुसार इस में फारसी, अरबी और अपभ्रंश का मिश्रण है। पद्य नं० ३ और ९ पर टीका करते हुए टीकाकारने दो पद्य उद्धृत किये हैं। इनके विषयमें मुनि जिनविजय फुटनोट में लिखते हैं--"टिप्पणकारे आ पद्य कोई कोष ग्रंथमाथी अहि आपलं छे । आमांना शब्दोनो खयाल बराबर नथी आवतो। पण आ पद्य ऊपरथी ए वात जणाय छे के आगळन। वखतमां फारसी अने संस्कृत एम द्विभाषाकोष आपणा विद्वानोए बनाव्या हता।" - अम्बाला शहर के श्वेताम्बर भंडार में विक्रमसिंहरचित "पारसीभाषानुशासन" की एक प्राचीन प्रति विद्यमान है जिसका परिचय हम "वूल्नर कमैसोरेशन वोल्यूम," लाहौर, १९४०, पृ० ११९-२२, तथा "श्री जैन सत्य प्रकाश," क्रमांक ८५,पृ०२२-२४ में करा चुके हैं । उपर्युक्त दोनों उद्धरण इसी ग्रन्थ में लिये गये हैं । जैसे १. जैन साहित्य संशोधक; खंड ३, पृ० २१-२९ । For Private And Personal Use Only
SR No.521599
Book TitleJain_Satyaprakash 1944 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1944
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size17 MB
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