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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म७] પંજાબમેં જૈનધર્મ [ 3५७ " सब संघस्वामी मुक्तिगामी, मनह कामी दायगों, संबत ग्रह अरु शत सतारह, मास कातिग नायगो । तमपक्ष रवि दिन रुद्रतिथि गिन, सालकोटपुरमंडणो, हंसराज गणि-शिष ऋषि मुकेशव स्तव्यो वामानंदणो॥" इति श्री पार्श्वजिन स्तवनम् । (यहां स्तवन संपूर्ण उद्धत कर देता, किन्तु लेख बढ जाने के भयसे उद्धत न कर सका ) देखिये सालकोटपुरमंडणो ये शब्द ही स्तवः सिद्ध कर रहे हैं कि १७०९ में सीयालकोट शहरमें श्री पार्श्वनाथस्वामीजी का मंदिर था, यदि मंदिर न होता तो कवि ये शब्द सालकोटपुरमंडणो कैसे और क्यों लिखता ? जब मंदिर था तो मंदिर मानने वाले भी थे, इसमें संदेह ही क्या है ? संसार परिवर्तनशील है, इसमें परिवर्तन हुआ ही करते हैं, यह कोई ताजुब की बात नहीं । यह तो स्पष्ट हो चुका है कि पंजाबमें पहेले श्री जिनेश्वरदेव के मंदिर और मंदिर के मानने वाले देव पूजा के उपासक जैन ही थे, किन्तु भवितव्यतावशात् समय ऐसा आ पहुंचा कि अवनति के मोजोने, मंदिर, देवपूजा, आदि सद्धर्म का अभावसा कर दिया। पतन के बाद फिर उत्थान होता ही है, इसी नियम मुजब इस विसमी सदि में फिर उत्थान की जबरदस्त लहरें आईं, जिससे देवमंदिर-देवपूजादि सद्धर्मका जोरोंसे प्रचार हुआ, लोग अपने सद्धर्ममें मजबूत हो गये । इन उत्थान को लहरोंके लानेवाले परम सद्गुरुदेव श्री बुद्धिविजय जी महाराज और आपके शिष्यरत्न न्यायशंभोनिधि जैनाचार्य श्रीमद्विजयानंदसूरीश्वर( आत्माराम )जी महारान थे । आपकी ही कृपासे पंजाबमें आज श्री जिनेश्वर देवोंके गगनचुम्बी भव्य शिखरबद्ध मंदिरों पर सोनेके चमकते हुए कलश एवं लहराती हुई ध्वजायें जैनधर्मको देदीप्यमान कर रही हैं और हजारों नर--नारियें मुक्तकंउसे आपके किये उपकारों को याद कर करके गुणानुवाद गा रहे है ।। ___ बडी खुशी की बात है कि आपके बाद आपके ही पट्टधर परमगुरुदेव श्रीमद् विजयवल्लभसूरीश्वरजी महाराजने आपके उत्थान को यानी सद्धर्म के प्रचार को ज्ञानमंदिर-देवमंदिर बनवाकर आगे बढ़ाया, सीयालकोट जैसे शहरमें जहां साधुओंको पांव रखने का स्थान मिलाना मुश्किल था वहां भी चातुर्मास करके, श्री ऋषम, चंद्रानन, वारीषेण और श्री वर्धमान इन श्री चार शाश्वते जिनेश्वरदेवों का चौमुखा शौधशीखी भव्य जिनमंदिर निर्माण करवाया जो देखने के काबिल है। प्रसंगोपात्त काश्मीर जाने वाले सद्गृहस्थों को सूचित करना जरूरी है कि काश्मीर जाते हुए वजीराबाद और जम्मुशहरके बिचमें सीयालकोट शहर आता है, स्टेशन परसे ही मंदिरजी नजर आता है। अतः एक टाईम उतर कर जरूर मंदिरजी के दर्शन कर लाभ उठावे । For Private And Personal Use Only
SR No.521598
Book TitleJain_Satyaprakash 1944 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1944
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size17 MB
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