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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८८ ] શ્રી જેન સત્ય પ્રકાશ [ भा १००-१-२ ___ उपर्युक्त सभी रचनाएं पद्यमें हैं । गद्यमें भी एतद् विषयक कई ग्रंथ जैन भंडारोंमें पाये जाते हैं, पर उनके रचयिताओंके जैन होनेका निश्चित नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार यथाशात विक्रमादित्य संबंधी श्वे. जै. साहित्यके ५५ ग्रंथोंकी सूची यहा प्रकाशित की जारही है। विशेष खोज करने पर और भी अनेकों ग्रन्थ मिलनेका संभव है। इनमें से कई ग्रंथोंको अनेकों प्रतियां बीकानेरके अनेक संग्रहालयोंमें हैं। यहां स्थानाभावसे केवल एक-दो स्थानोंका ही निर्देश किया गया है। ___ इसके अतिरिक्त जैन कवि कुशललामविरचित माधवानलकामकंदला चौपाई (सं. १६१६ फागुण शुदि १३ जैसलमेर) में भी विक्रमादित्यके परदुःखभंजनको कथा आती है । उक्त चोपई, राजस्थानीमें कवि गणपति ( सं. १५८४ श्रा. सु. ७ आमुदरि) एवं गुजरातीमें दामोदर (सं. १७३७ पूर्व) रचित इसी नामावाली रचनाओंके साथ, बडोदा ओरियन्टल सोरोझसे प्रकाशित है । इसी प्रकार रूपमुनिरचित अंबडरास (सं. १८८० जे. सु. ३० बु. अजीमगंज ) आदिमें विक्रमके पंचदंड आदि कथानक पाये जाते हैं । आचर्यकी बात है कि श्वेतांबर जैनोंने जब कि विक्रमादित्यके सम्बन्धमें ५५ ग्रन्थ बनाये हैं, दिगम्बर समाजके केवल एक ही विक्रमचरित्र (श्रुतसागररचित १६ वीं शताब्दी )का उल्लेख मात्र आरा जैन सिद्धान्त भवनसे प्रकाशित प्रशस्तिसंग्रहमें पाया जाता है । श्वे. जैनोंके इतने विशाल साहित्यनिर्माणके दो प्रधान कारण हैं: १ उन्होंने लोकसाहित्यके सर्जनमें एवं संरक्षणमें सदासे बडी दिलचस्पी ली है, इसके प्रमाणस्वरूप विक्रमकथाओंके अतिरिक्त अन्य अनेक कथाओं पर रचित उनके ग्रन्थ हैं (देखें-जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास पृ. ६०८, ६६१, ६७९); और २ सिद्धसेन दिवाकर नामक श्वे. विद्वानका विक्रमादित्यसे घनिष्ट संबंध ( यहां तक कि उनके उपदेशसे विक्रमादित्यके जैनी होने तकका कहा गया है, उसने शत्रुजयकी यात्रा भी को थी)। __ महान् गौरवशाली विक्रमादित्यी सच्ची श्रद्धांजली यही हो सकती है कि हम उनके चरित्रमय ग्रंथोंमेंसे विविध दृष्टियोंसे उपयोगी ग्रन्थरत्नोंको चुनचुन कर प्रकाशित करें और उनकी कथाओंकी गहरी छानबीन कर उनके विशुद्ध इतिहासको प्रकाशमें लावें । आशा ही नहीं, पूरा विश्वास है कि इस लेखका अध्ययन कर हमारे विद्वान उक्त कार्यमें शीघ्र ही अग्रसर होंगे। २० इस लेखमें उल्लिखित दानसागर भंडार, वर्धमान भं., जयचंद्र भं., अभयसिंह भं., कृपाचंद्रसूरि भं., श्रीपूज्यजी भं., महिमाभक्ति भं., गोविंदपुस्तकालय, सेठिया लायब्रेरी, हमारा संग्रह, बीकानेर स्टेट लायब्रेरी ये सभी बीकानेरमें ही अवस्थित हैं। बीकानेरके जैन भंडारोंमें हस्तलिखित लगभग ५० हजार प्रतियां है । इन भंडारोंका परिचय मैंने अपने स्वतंत्र लेखमें दिया है, जो शीघ्र ही प्रकाशित होगा। For Private And Personal Use Only
SR No.521597
Book TitleJain_Satyaprakash 1944 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1944
Total Pages244
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size120 MB
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