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________________ ३ लोकभाषामें'५ विक्रमविषयक जैन साहित्य વિકમ-વિશેષાંક | Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११३ amane । विक्रमचरित्र कुमाररास | वडतपागच्छीय साधुकीर्ति उ. ज.गु. क. भा.१ पृ. ३५ २ सं. १५६५ जे. शु. विक्रमसेन चौपइ पूर्णिमागच्छीय उदयभानु ३ सं. १५९६ के लगभग । विक्रमरास तपागच्छीय धर्मसिंह ४ सं. १६३८ मा. सु. ७ विक्रमरासाई आगम बिडालब गच्छीय " २४७ र. उज्जयिनी मंगलमाणिक्य ५ सं. १७२२ ? पो. सु. ८/ विक्रमादित्यचरित्र तपागच्छीय मानविजय अभयसिंह भंडार बु. खेमतानगर ६ सं. १७१४ काती कुडेनगर विक्रमसेन चौपह तपागच्छीय मानसागर वर्द्धमान भंडार ७ सं. १७२४ पो. व. १० । विक्रमादित्यरास तपागच्छीय परमसामर | उ. जै. गु.क. भा. ३१८ पृ. १२२८, गढवाडा ८ सं. १७३७ के लगभग । | खरतर दयातिलक अपूर्ण बीकानेर १५ जैन मुनिके लिये चतुर्मासके अतिरिक्त एक स्थानपर एक महिनेसे अधिक नहीं रहनेका विधान होनेसे वे हर समय प र उनकी भाषामें कई भाषाओंका थोडा बहुत संमिश्रण हो जाता है । अतः हमने उक्त तालिकाके ग्रंथोंको गुजराती हिन्दी राजस्थानी भाषाके अलग अलग न रखकर लोकभाषा शीर्षकके नीचे दे दिये हैं। फिर भी इनमें सबसे अधिक गुजराती, उससे कम राजस्थानी एवं कुछ ग्रंथों में हिन्दीका संमिश्रण को - For Private And Personal Use Only વિક્રમાદિત્ય સબંધી જૈન સાહિત્ય www.kobatirth.org - - १६ इसमें सिहासन बत्तीसी, वैतालपचीसी, पंचदंडछत्र, लीलावती, परकायप्रवेश, शीलमती, खापराचोर आदि विक्रमसंबंधी कथाओंकार १७ इस नामका इससे भिन्न अन्य एक जैन चौपइका आदिपत्र हमारे संग्रहमें है । १८ जै. *वे. को बम्बईसे इसके २ भाग प्रकाशित हुए हैं, तीसरा अभी छप रहा है । ये तीनों भाग जैन भाषासाहित्यकी जानकारी संस्कृत-प्राकृत श्वे. ग्रंथोंकी जानकारीके लिये और यहींसे प्रकाशित जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास-ये चारों ग्रन्थ अपूर्व हैं । इन चारों के मन श्रीमोहनलाल दलीचंद देसाई हैं । ht] Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.521597
Book TitleJain_Satyaprakash 1944 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1944
Total Pages244
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size120 MB
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