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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्रमांक १०० : विक्रम-विशेषांक श्री जैन सत्य प्रकाश 'नो १००मो क्रमांक, समाट् विक्रमादित्यना संवत्सरनी बीजी सहस्राब्दिनी पूर्णाहुति अने त्रीजी सहस्र दिना पारभना संधिकाळे, विक्रम-विशेषांक सरीके प्रगट थाय छे ए एक सुयोग छे.. । गत वैशाख मासमा समितिना त्रण पूज्यो-. आ. म. श्री विजयलावण्यसूरीश्वरजी, म. मु. म. श्री विद्याविजयजी अने पू. मु. म. श्री दर्शनविजयजी म. अमदावादमा मेगा थया: ते वखते, बीजाओ तरफथी समाट् विक्रमादित्य संबंधी खास अंको के ग्रन्थो प्रगट थवाना होय ग्यारे, विक्रमादित्य विषयक जैन इतिहास अने मान्यता जनता समक्ष रजू करवां आवश्यक समजीने 'श्री जैन सत्य प्रकाश'नो १००मो क्रमांक विक्रम-विशेषांक तरीके प्रगट करवानो निर्णय करवामांआन्यो हतो. आ निर्गय समितिना बाकीना बे पूज्यो-पू. आ. म. श्री सागरानंदसूरीश्वरजी म. तथा पू. आ. म. श्री विजयलन्धिमूरीश्वरजी म.ने जणावतां तेओए पण तेने अनुमोदन आप्यु हतुं. आजे ए निर्णय ना फळरूपे आ विशेषांक प्रगट करता अमने आनंद थाय छे. | आ विशेषांक प्रगट करवामां समितिने-अमदावादनिवासी शेठ श्री जगतचंद्र नेमवंदभाई वोहोराए पोताना स्व. पिता शेठ श्री नेमचंदभाई पोपटलाल वोहोराना स्मरणार्थे K.५०१) आपीने अने अमदावादनी शेठ आणदजी कल्याणजीनी पेढीए रू. ५००) आपीने-जे आर्थिक सगवड करी आपी छे ते माटे अमे तेओनो आभार मानीए छीए. अने आशा राखीए छीए के आ दळदार विशेषांक तैयार करवामा समितिने आ मदद उपरांत जे लगभग रू. ६००)नुं वधारे खर्च थयुं छे ते पण श्री संघ तरफथी अवश्य मळी रहेशे. भारतीय इतिहासना संशोधको हवे धीमे धीमे ए वात स्वीकारता थया छे के जेना संवासरने आजे ने हजार वर्ष पूरां थतां गणवामां आवे छे, ते समाट् विक्रमादित्यनी बे हजार वर्ष जेटलो प्राचीनता सिद्ध करवाना जे कई अल्प-अतिअल्य ऐतिहासिक के पारम्परिक उल्लेखो मळी आवे छे ते मुख्यत्वे जैन साहित्यमाज जळवाई रहेल छे. सुप्रसिद्ध कालकाचार्य-कथातकमां वर्णित प्रसंग जाणे सम्राट विक्रमादित्यना उद्गमर्नु बीज लागे छे. आवा जे काई साधनो मळी शकता होय ते बधाने, एकत्र रूपे रजू करवानो आ विशेषांकनो उद्देश छे. अमारं चोकस मानवु छे के कोई पण जातना संशोधनमा जे काई ध्रुवतारक नको करवामां आवे तेनी साथे स्थितस्य गतिचिन्तनीया-(परम्पराथी स्थितरूपे चाली आवती मान्यतानो समन्वय) ए पण ध्रुवतारक स्वीकारवो जोईए. आ ध्रुवतारकने विसरी जईने तद्दन स्वतंत्र रीते संशोधन करवानुं ज ए फळ छे के आजे विक्रमादित्यना अस्तित्व माटे पण अनेक प्रकारनी आशंकाओ प्रवती रही छे. लोकजीवनमां सेंकडो वर्षोथो परम्पराथी जळवाई रहेली मान्यताओ उपरना अतिशयोक्ति के विसंवाद वगेरेना थरो वेगळा करीने, जो तेने सूक्ष्म दृष्टिथी समजवानो प्रयत्न करवामां आवे तो ते मान्यताओ बहु ज मार्गदर्शक थई पडे निःशंक छे. आ विशेषांक माटे जे जे पुज्य आचार्य महाराज आदि मुनिवरोए तेमज अन्य विद्वानोए लेखो मोकलवानी कृपा करी छे ते सौनो अमे आभार मानीए छीए, अने आ विशेषांक श्रीसंघना करकमळमां समपित करी कृतार्थ पईए छीए. - तंत्री - - For Private And Personal Use Only
SR No.521597
Book TitleJain_Satyaprakash 1944 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1944
Total Pages244
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size120 MB
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