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[30] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[१५८ थे। थोडा आगे जाने पर एक बहुत बडी पाषाणखंड की बनी हुई एक वेदी मिली, जिसे वहाँ के लोग व्यासवेदी कहते हैं। इससे कुछ आगे जाने पर एक पहाडी गुफा मिली जो वास्तव में गुफा नहीं है किन्तु दो पर्वतखंडों के मिल जाने से प्राकृतिक गुफासी हो गई है। उसमें प्रवेश करने पर दो कायोत्सर्ग ध्यानस्थ मूर्तियों के दर्शन हुए, जिनमें दाहिनी ओर की मूर्ति ४ फुट ऊँची और १॥ फुट चौडी है । उसके दाहिनी ओर ऊपरकी तरफ ६ अक्षर खुदे हैं ओर नीचे ४ अक्षर खुदे हैं। प्रतिमा के नीचे पदाका चित है जो कि छठे जैन तीर्थङ्कर श्री पद्मप्रभु भगवानकी मूर्ति का परिचायक है।
___ दूसरी मूर्ति इसके बांये तरफ हैं वह २। फुट ऊँची और १ फुट चौड़ी है। इसके नीचे वृषभ का चिह्न है जो कि प्रथम जैन तीर्थङ्कर श्री ऋषभदेव भगवान का लांछन है । मस्तक के पीछे भामंडल लगा हुआ है जो कि समवसरण में व जैन मंदिरों में प्रभु प्रतिमा
ओंके पीछे लगा रहता है । इस मूर्तिके बायीं तरफ चार अक्षर खुदे हुए हैं । यह लिपी लगभग १००० वर्ष की प्राचीन प्रतीत होती है। अक्षर बहुत बड़े बड़े और स्पष्ट है परन्तु पत्थर साफ नहीं होने से छाप नहीं ली जा सकी, फोटो का भी साधन उस समय साथ में नहीं था अतः भविष्यमें इस विषयमें उचित व्यवस्था की जायगी। वहीसे फिरती लौटकर सूर्यकुंड नामक सरोवर के पास आये । वहाँका घाट टूटा फूटा परन्तु पुरानी इंटोका बना हुआ कहीं कहीं अवशिष्ट था उसीके किनारे सूर्यका मन्दिर था जो अब नष्ट हो चुका, परन्तु एक टीनके धरमें सूर्यको मृत्ति अब भी सुरक्षित है । काले रंगके पत्थरकी सूर्यमूर्ति है जिसमें बीचमें १ मूर्ति
और उसके चारों तरफ १२ मूर्तियों हैं जिसे सूर्यको १२ कला बतलाते हैं। सब मूर्तियोंके बड़े बड़े कान हाथीके से विचित्र मालूम होते हैं। पहाड़ पर और नोचे और भी मूर्तियां मिल सकती है, परन्तु जंगल बहुत है और रास्ता खराब होनेके कारण हम लोग नहीं गये।।
सूर्य पहाड बहुत बड़ा और कई मीलोंमें फैला हुआ है । इस पहाड़ के ऊपर जंगली जातिया रहती हैं । वे खेती बाड़ी करके अपना निर्वाह करती हैं। पहाड़ के ऊपर घना जंगल है और रास्ता खराब है।
इसी प्रकार गवालपाडा जिले के पंचरत्न, पातालपुरी, जोगीगुफा, टुंकेश्वरी इत्यादि पहाड़ों पर कई प्राचीन मूर्तियों के भग्नावशेष हैं । इन पहाड़ो पर कई जोगी तपस्या करते थे । वहाँ पर कई तरह की जड़ी बूटिया मिलती है। रास्ता बहुत खराब हैं । सरकारको इन प्राचीन पहाड़ो के अनुसंधान की ओर ध्यान देना चाहिए ।
आसाम प्रान्तसे जैनधर्मका सम्बन्ध कैसा रहा है इसके जाननेका कोई साधन हमारे अवलोकन में नहीं आया। विशेषज्ञों से निवेदन है कि इस सम्बन्धमें उनकी कोई जानकारी हो तो प्रकाश में लाने की कृपा करें ।
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