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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूर्य पहाडकी प्राचीन जैन मूर्तियां ____ लेखक:-श्रीयुत भंवरलालजी नाहटा, बीकानेर.. आसाम प्रान्त में गवालपाडा एक सुप्रसिद्ध नगर है । यह ब्रह्मपुत्रा नदी के किनारे स्थित है। पहले यह गवालपाडा जिले के नाम से प्रसिद्धि था अब यह धोबड़ी जिले के अन्तगर्त है । यहां पर पाट (Jute) की बहुत आमदानी होती है। सूर्यपहाड़ गवालपाड से १४ मील की दूरी पर है। गवालपाडे में श्री पार्श्वनाथ भगवान का एक मंदिर है जिसका वर्णन कुछ वर्ष पूर्व हमने 'आसाम प्रान्त में जैन मंदिर' नामक लेखमें प्रकाशित किया था । हमारी दुकान वहाँ १०० वर्ष से भी पुरानी है । वर्षोंसे हमने वहाँ के निकटवर्ती सूर्य पहाड की प्राचीन मूर्तियों की बात सुन रखी थी इस लिए ता. २२ नवम्बर सन १९४१ के दिन हम लोग मोटर द्वारा सूर्य पहाडके दर्शनार्थ निकले । हमारी मोटर आसाम के ऊबड़ खाबड पथरीले जंगल को पार करती हुई क्रमशः डूबापाडा के नदी तट पर पहुंची। नदी पर पुल नहीं होने के कारण मोटरगाड़ी को व यात्रियों को मांड (जुडी हुई दी नौकाएं ) द्वारा पार किया जाता है। मोटर को मांड पर लेजानेके लिए कच्चा घाट बना रहता है किन्तु वह टूटा हुआ था और नदी के वेगसे अस्तव्यस्त हो गया था मजदूर लोग उसे ठीक करने के लिए बैठे हुए थे, हमने उन्हें शीघ्रता से ठीक करवा कर नदी को पार किया और थोड़ी देर में सूर्य पहाड के निकट जा पहुँचे । सूर्य पहाड पर एक गुजराती साधु जो कि सन्तोषी और सजन थे अपने शिष्य सहित वही रहते थे। पूर्व परिचित होने के कारण बड़ी प्रसन्नता पूर्वक हमारा स्वागत करनेके लिए आये और हमारे साथ साथ घूम कर सब जगह दिखलाई । दो तीन दिनसे ज्वराक्रान्त और निराहार होते हुए भी उन्होंने हमें ऐसा मालूम नहीं होने दिया। ज्वराक्रान्त होने का तभी ज्ञात हुआ कि जब हम सब कुछ देखकर उनके आश्रम में आये और उन्होंने हम लोगोंका केला, पपीता, दूध, चाय आदि से सत्कार किया। यह परगना दसभुजा सोमेश्वर के नामसे प्रसिद्ध है । पहले पहाडके नीचे पानी के पहाड़ी नाले पर बहुत से महादेवजी के लिंग और छोटी गुफाएं हैं । एक चट्टान पर १२ हाथोंवाली दशभुजा देवी की मूर्ति है जिसके मस्तक पर सप्तफणा सांप का छत्र है । उसके पास राम, लक्षमण, सीता और पांच सतियों को मूर्तियां है । पहाड के ऊपर सोमेश्वर महादेव हैं, रास्ते में हनुमानजी का मंदिर है । दूसरी तरफ से पहाडके किनारे किनारे हो कर गये वह। पानी के नाले पर एक गणेशजी की मूत्ति हैं उसके समीप बोहड जंगलमें से व्याघ्रराज आकर अपनी पिपासा शान्त करके लौटे थे, जिनके पदचिह्न उस समय भूमि पर स्पष्ट अंकित For Private And Personal Use Only
SR No.521593
Book TitleJain_Satyaprakash 1943 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1943
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size16 MB
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