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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir અંક ૧૦] શીલદેવસૂરિ વિરચિત વિનયંધરચરિત્ર [૧૧]. उत्पन्न हुआ जिसका नाम विनयंधर रखा गया । आगे उसके लालन-पोषणका वर्णन है । पाठशालामें जाकर उसने क्या २ विद्या पढ़ी यह और औत्पत्तिकी, वैनयिकी आदि बुद्धियोंके दृष्टान्त सहित लक्षण दिये हैं। -पत्र ३८(क) पर विनयधरके गुणवर्णन किये गये हैं। अब विनयंधर जवान हो गया था और उसका चार युवतियों-तारा, श्री, विनया और देवीके साथ विवाह कर दिया गया। अब विनयधर बड़े आनन्दसे रहने लगा। एक दिन राजसभामें वार्ता चल रही थी कि हमारे नगरमें सबसे सुखी कौन है। लोगोंने विनयंधरका नाम लिया। किसीने उसके शारीरिक बल और रूपकी प्रशंसा की। किसीने उसके बुद्धि, धैर्य, क्षमा आदि गुणोंकी श्लाघा की। एकने कहा कि उसके घरमें अगणित धन है और वह सदा दान देता रहता है। एक दुष्ट व्यक्तिने उसकी स्त्रियोंके रूप और यौवनका वर्णन किया। यह सुनकर सब लोग चकित हुए, परन्तु राजाके हृदयमें कामवासना उत्पन्न हो गई। वह इन स्त्रियोंको हरण करनेका उपाय सोचने लगा । अन्तमें उसने अपने एक विश्वासपात्र नौकरको कहा कि तुम विनयंधरके साथ कपट-मैत्री डाल लो और अवसर पाकर भोजपत्रके टुकड़े - पर उसके अपने हाथसे यह गाथा लिखवालो। फिर वह भोजपत्रका टुकड़ा मुझे लाकर दे देना । गाथा-पसयच्छि रइविचक्खिणि अज्ज अभग्गस्स तुह दुस्सह विरहे । सा जामिणी तिजामा वि जाम सहस्सव्व मह जाया । [पत्र ४३ (क), पंक्ति ७] भावार्थ-हे मृगनयने, रतिविचक्षणे, आज मुझ अभागेको तेरे दुस्सह विरहके कारण यह तीन पहरकी रात हजार पहर वाली हो गई है। ४ नौकरने राजाकी आज्ञाका पालन किया। जब उसने विनयंधरके हाथसे यह गाथा लिखवा कर राजाको दी, तो राजाने उसे रानीके पास भेज दिया और शोर मचा दिया कि विनयधरने रानीके प्रति प्रणयपत्र भेजा है। झट राजसभा करके पत्र पंचोंके आगे रख दिया और कहा कि इस पत्रको देख कर सच २ बतलाओ कि यह पत्र विनयंधरके अपने हाथका ४. “ पसयच्छि" शब्दकै तीन अर्थ हो सकते है १. पसय = मृगविशेष (देशीनामामाला ६, ४) अत: "पसयच्छि" मृगाक्षी २. पसय = प्रसृत; अतः "पसयच्छि "= दीर्घाक्षी ३. पसय = प्रसव, कमल, अतः “पसर्याच्छ” = कमलाक्षी ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.521591
Book TitleJain_Satyaprakash 1943 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1943
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size17 MB
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