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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [30] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [१५८ २२८५ है। इसमें सर्ग, अध्याय, प्रकरण आदि भाग नहीं हैं । नामको तो यह विनयधरचरित्र है, परन्तु इसमें विनयंधरके जीवनकी केवल एक-दो घटनाओंका उल्लेख है, और वह भी अति संक्षिप्त । शेष समग्र ग्रन्थमें नीतिवाक्य, दृष्टान्त, ज्ञात, सूत्रपाठ आदि भरे पड़े हैं। आधेसे अधिक तो प्रस्तावना मात्र है जिसमें धर्मका लक्षण धर्मी-अधर्मी जनोंकी संख्या, काव्यके गुण, वक्ता-श्रोतोका लक्षण, सम्यग दर्शन ज्ञान चारित्रका वर्णन और अन्तमें पांच प्रकारके दानका स्वरूप बतलाया है। दानके प्रसंगसे पत्र २९(ख) पर विनयधरका चरित्र आरम्भ होता है। यथा-चम्पानगरीमें धर्मबुद्धि राजा राज करता था। विजयन्तो उसकी रानी थी। उसी नगरीमें इभ्य नामी शेठ रहता था। पूर्णयशा उसकी भार्या थी। उनके एक पुत्र ३. श्रीमवृद्धगणे गुणेशगणभद् भद्रेश्वरः सूरिराट्, तत्पट्टेऽथ मुनीश्वरः समभवत् सूरिमहेन्द्राभिधः। श्रीमेरुप्रभसूरयश्च मुनिदेवाख्याः सुपुण्यप्रभाः, सरीन्द्राः किल कालिकार्यसदृशाः श्रीभावदेवाह्वयाः ॥५२॥ तच्छिष्यैरिह सूरिभिदुधिया श्रीशीलदेवाहयैश्छन्दोभिर्निजहब्धवृत्तरचनासंमीलनाय स्फुटम् । सिद्धान्तोक्तसुदण्डकाच कुहचिद् राद्धान्तगाथाः पुनर्, गद्यं पद्यमिदं चरित्रमखिलं ग्रन्थोक्तिभिर्भाषितम् ॥ ५३॥ श्लोका वृत्तानि गाथाश्च संस्कृतं प्राकृतं क्वचित। दोधकानि कथावार्ता नूतनेयं च मस्कृतिः ॥ ५४ ।। आलापकांश्च ग्रन्थेस्मिन्नर्थयुक्तान् सगाथकान् । अणिमामहिमाश्लोकं विहायान्यकृतिन हि ॥ ५५ ॥ . अर्हद्वचनविरुद्धं यत् किंचित् कापि जल्पितम्। मोहाजिनवरसाक्षिकमधुना मिथ्या मे दुष्कृतं त्रिविधम् ॥ ५६ ॥ ये मत्तोधिकपण्डिताश्च कवयस्तैर्मत्कृपा मानसे, कर्तव्या च समैः समत्वममतावद्यं परामृश्य तत् । शुद्ध वाक्यमवेक्ष्य तत्परधिया संस्थापनीयं तथा, छिद्रग्राहकदुर्जनास्तु सुजनाः केचिद् गुणग्राहिणः ॥ १७ ॥ द्वे सहस्रे च द्विशती पश्चाशीत्यधिकाः पुनः। प्रत्यक्षरं गणनया ग्रन्थमानं विनिश्चितम् ॥ ५८ ॥ . इति दानोपदेशे विनयधरचरितं संपूर्णम् ॥ नोट-श्लोक ५३ में “ कुहचिदू" वैदिक प्रयोग है। फुटनोट १ और ३ के पध ग्रन्थकारकी प्रशस्ति है। For Private And Personal Use Only
SR No.521591
Book TitleJain_Satyaprakash 1943 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1943
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size17 MB
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