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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतवर्षके बाहर जैनधर्म लेखक:-श्रीमान् डॉ. बनारसीदासजी जैन M. A. Ph. D. लाहौर यद्यपि जैन और बौद्ध धर्म दोनों ही श्रमण संस्कृतिके भेद हैं, और इनके सिद्धान्त और आचरण भी आपसमें कुछ कुछ मिलते-जुलतेसे हैं, तथापि बौद्ध धर्म तो अपनी जन्मभूमि भारतको छोड़ कर दूर तक देश-देशान्तरोंमें फैल गया है, लेकिन जैनधर्म भारतवर्ष तक ही सीमित रहा है। इसका कारण यह प्रतीत होता है कि जैनधर्मके उपदेष्टा साधु-मुनिराजोंके जीवनके नियम बहुत कठोर होते थे और वे इन पर बड़ी दृढता से चलते थे। वे इनमें शैथिल्य न आने देते थे। ये नियम एसे कठिन थे कि विदेशमें इनका पालन करना बड़ा मुश्किल था । इस लिये जैनधर्मका प्रचार भारतके बाहर नहीं हो सका और न भारतके बाहर कोई जैन अवशेष ही मिले हैं। मगर फिर भी श्रावक लोग तो व्यापारके निमित्त देश-देशान्तरोंमें जाया करते थे और वहांके रहने वाले इनके संपर्कमें आते थे। संभव है कि इन श्रानकोंका कुछ न कुछ प्रभाव अन्य देशोंके किसी किसी व्यक्ति पर पड़ जाता होगा। ऐसे एक व्यक्ति हैं अबुल अला जो अरब देशके विख्यात दार्शनिक कवि थे। ये मुअ के रहने वाले थे इस लिये अबुल अला मुअरींकेनामसे प्रसिद्ध हैं। इनकाजीवन बड़ा निवृत्तिमय था। ये निरामिष आहार करते थे अर्थात् इनको मांस भक्षणका सर्वथा त्याग था। यहा तक कि ये दूध पीनेमें भी पाप समझते थे, क्योंकि दूध तो गाय भैसके अपने बच्चों के लिये होता है। वे ऐसा दूध लेते थे जो गाय भैसके बच्चोंके तृप्तिपूर्वक पीलेनेके पीछे बचे। इसी प्रकार वे मधु (शहद) का भी सेवन न करते थे, क्योंकि मधुको मक्खियां अपने लिये बनाती हैं। इसी हेतुसे: अण्डे आदिका भी इन्हें परित्याग था । इनका भोजन और वस्त्र इतना सादा होता था कि दूसरा कोई पुरुष इसे खाना और पहिनना पसन्द न करे । वे चमड़ेका जूता पहिननेमें पाप समझते, इसलिये पैरोंमें लकड़ीकी खडाऊं डाला करते । वे जीवरक्षामें बड़े सावधान रहते थे। वे कपडेका प्रयोग बहुत थोडा करते, यहां तक कि नग्न रहना पसन्द करते थे । इनका जन्म सं. १०३० में और मृत्यु सं. १११५ मे हुई। इस प्रकारके निवृत्तिपरक और दयालु व्यक्तिका अरब जैसे अनार्य देशमें पैरोंमें प्रयोग बहुत थोडा थे। का प्रयोग बहुत बाला करते । वे जीवरक्षा और मृत्यु सं. १११५ अनार्य देश For Private And Personal Use Only
SR No.521590
Book TitleJain_Satyaprakash 1943 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1943
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size17 MB
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