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અરિહન્ત–ચત્ય શબ્દક અર્થ
[१०१]
___ "स्वसमाजसे भ्रष्ट होकर अन्य समाजमें मिलनेवालोंके लिये बाधा रखना खास जरूरत है, क्योंकि ऐसे लोग पूर्वपरिचयके कारण पूर्वसमाजके सामान्य लोगमें पहुंचकर उन्हें भी बिगाडनेका प्रयत्न करते हैं"। उचित लिखा गया है, परन्तु यह बाधा 'अन्यतोर्थिकपरिगृहीतचैत्यानि' शब्दसे ही नीकालनी चाहिए, इसमें कोई निर्बध नहीं है। इसका अन्य शब्दों से भी निराकरण हो जाता है। “एक तरह से है तो यह न्याय संगत बात" इस तरह कहते हुए अनिच्छासे आपने भी उक्त कुछ बातों को न्यायसंगत मान ही लिया। इसलिये उस विषयपर मुझे ज्यादा लिखने की जरूरत नहीं। फिर लिखते हैं कि " किन्तु थोडीसी बात और रह जाती है वो यह कि साधु से असाधु तो हो सकता है, किन्तु क्या परमेश्वर भी पतित होते हैं ? जडमें भी गुण अवगुणका सद्भाव होता है?" यह बात जरूर रह जाती है और यह तो आप पर भी बीती ही है जो कि जड मूर्तिमंडन को जैसा ही देखा झट कूद पडे, कलम उठाई और लिख मारा। जड होनेसे ही मूर्तिमंडनने अपने भावको आपको बतलाया नहीं, और ज्यों का त्यों कलमसे कागज को आपने काला कर दिया। इससे ही आपको जडमें गुण व अवगुण है या नहीं इसका मान हो ही जाता है। न मानो तो उसके लिये कोई उपाय नहीं। दूसरी बात रही परमेश्वर की। उन्हें कोई पतित कहता हो नहीं और अन्य तीथिको से परिगृहीत भी नहीं हो सकते। उनकी मूत्ति में भी जबतक तदीयत्व रहेगा तबतक अपतित ही है अन्यथा अपूजनीय है इससे परमेश्वरमें कोई पतित वा अपतित की शंका ही नहीं रहती है।
___ और असणं पाणं इत्यादि वाक्यों को लेकर सूरिजी का जो उपहास करते हैं और लिखते है कि “वास्तवमें आहार पाणी खादिम स्वादिम ये शब्दों ही मनुष्य के व्यवहार खान पानकी वस्तु घोषित कर रहे हैं, पूजाकी वस्तुओं को कोई भी आहार आदिक से नहीं बतलाते" यह बिलकुल झूठ है, क्योंकि 'अन्न उत्थिय देवयाणि' इसके साथ असणं पाणं कैसे लगगे इस बातको देखी ही नहीं। अन्य तीथिक देवता मनुष्य है हि नहीं तो असणं पाणं का इसके साथ समन्वय हो सकता है । अतः प्रत्यालोचक महाशयजी! मूर्तिद्वेषके नशे को उतारकर समदृष्टि से विचार कीजिये ।
(क्रमशः)
સૂચના આ અંકની જેમ આવતો અંક પણ વખતસર ૧૫મી તારીખે પ્રગટ કરવાની ઈચ્છા છે. આમ છતાં અત્યારના અનિશ્ચિત સંગેના કારણે અંક પ્રગટ કરવામાં વિલંબ થાય તો તે ચલાવી લેવા અને પત્ર લખીને તપાસ નહીં કરવા વાચકોને વિનંતી છે.
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