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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4 3] - श्रापयार ८ वे में २५३ वा श्लोक अधिक बढ़ा दिये हैं। ४. कुछ स्थानोंमें श्लोकोंको उपर नीचे कर रक्खे है, और कहीं २ पदोंको ही उलटा दिया है। इस प्रकार प्रलोकोंके नंबरमें हेरफेर हो गया है, एवं अर्थक्रम भी तूट गया है। ५. सब उल्लासों के अंतमें संधियां भी लिखी है। सिर्फ विवेकविकास के स्थानमें 'श्रावकाचार' शब्द रख दिये हैं। ६. 'विवेकाविलास' में अंतिम काव्यके बाद १० पद्योंकी प्रशस्ति है, जिसमें आ. जिनदत्तमरिजी की गुरुपरंपरा आदि वर्णित है। 'श्रावकाचार' के अंतमें ऐसी प्रशस्ति नहीं है। ७. 'विवेकविलास' की श्लोकसंख्या १३२१ है, और 'श्रावकाचार' की श्लोकसंख्या १२९४ है। ८. आचार्यने 'विवेकषिलास' में प्रथम उल्लास के तीसरे और नववें श्लोक में अपने गुरुजी और ग्रंथ का निम्न तरह परिचय दिया है। जो + ववत् प्रतिभा यस्य । स्वस्थानस्यापि पुण्याय । व + चो मधुरिमांचितं ॥ कुप्रवृत्तिनिवृत्तये॥ दे + हं गेहं श्रियस्तं स्वं। श्रीविवेकविलासाख्यो। वं + दे सरिवरं गुरुम् ॥३॥ | ग्रंथः प्रारभ्यते मितः ॥९॥ कुन्दकुन्द आचार्यने उन दोनों को निम्न रूप में परावर्तित कर रखे हैं। जीववत् प्रतिमा यस्य । स्वस्थानस्यापि पुण्याय । बचो मधुरिमांचितं ॥ कुप्रवृत्तिनिवृत्तये ॥ देहं गेहं श्रियस्तं स्वं । श्रावकाचारविन्यासवन्दे जिन विधुं गुरुम ॥ ३ ॥ ग्रन्थः प्रारभ्यते मया ॥ ९ ॥ 'श्रावकाचार'के विधाताने असलीपन बतानेके लिये हेरफेर करना चाहा, और पैसा किया भी सही, मगर जो खास बदलने के काबिल था, वह तो उनके ख्याल आया में ही नहीं। देखिए १. 'विवेकविलास'के उल्लास ८ श्लोक २४१-२४२ में तीर्थकर में नहीं रहने वाले १८ दूषण बतलाये हैं, वे १८ दोष श्वेताम्बर मान्यताके अनुसार है। दिगम्बर समाज उनसे भिन्न और १८ दोष मानती है। किन्तु 'कुन्दकुन्दश्रावकाचार में तो 'विवेकविलास'के ही १८ दोष दर्ज हैं। २. आ० जिनदत्तसूरिजीने 'विवेकविलास'के प्रथम उल्लासके तीसरे श्लोकमें अपने गुरुको, गुप्ताक्षरोंसे नाम जोड़कर नमस्कार किया है। तीसरे श्लोकके चारों चरणों के पहिले पहिले अक्षरोंको मिलानेसे 'जी+व+दे+व' नाम बनता है। माने-'विवेकविलास'के निर्माता आ० जिनदत्तमरिके गुरुका नाम “जीवदेवमूरि" है। उनको 'वन्दे मूरिवरं गुरुम् ' पद्यसे आचार्य ने नमस्कार किया है। For Private And Personal Use Only
SR No.521585
Book TitleJain_Satyaprakash 1942 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1942
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size16 MB
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