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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3] જેન ઇતિહાસ લાહોર [८3) थडियां भाबडयान अकबरके समयमें या उससे कुछ पूर्व बसा होगा। - लाहौरसे सात आठ मील दक्षिणकी ओर एक ग्राम है जिसका नाम है " भाबडा"। शायद यहां भाबड़ी अर्थात् ओसवालोंकी बसती होगी, इसीसे यह नाम पड़ा। भाबड़ा ग्राममें मन्त्री कर्मचंद द्वारा जिनकुशलसूरिकी चरणपादुका स्थापित की गई थीं, जिसके साथ एक बावड़ी और बहुतसी ज़मीन भी लगती थी। अस्सी पचासी बरस हुए. इस जमीनको भाबड़ाके जमींदारोंने दबा लिया । तब वहांसे चरणपादुका हटा कर पास वाले ग्राम “गुरु मांगट में स्थापित की गई। पुरानी हो जाने पर ये चरणपादुका शहरके मन्दिरमें रख दी गई और गुरुमांगटमें नई चरणपादुका पधारी गई । चरणपादुकाके स्थान पर प्रति मास श्वेताम्बर जैनौका मेला लगता है। यहां का जलवायु बड़ा स्वास्थ्यप्रद है। इन के अतिरिक्त बहुतसे ऐसे ग्रन्थ मिलते हैं जो अकबर के समय लाहौर में रचे या लिपि बद्ध किये गये । प्रसिद्धश्रावक --- अकबरके समय लाहोरमें दो मुल्य श्रावक थे- दुर्जनसालसिंह और कर्मचन्द। इनमेंसे दुर्जनसालसिंह तो जदिया गोत्रीय ओसवाल था। इसके पिताका नाम नानू और पितामहका नाम जगूशाह था। यह तपागच्छीय श्री हीरविजयसूरिका अनन्य भक्त था। कृष्णदासने सं. १६५१ में लाहौर में “दुर्जनसाल बावनी" लिखी। इसके अनुसार दुर्जनसालने लाहौरमें एक मन्दिर बनवाया, और संघ समेत शौरीपुरकी यात्रा करके वहांका जीर्णोद्धार किया। . दूसरा श्रावक मन्त्री कर्मचन्द था। यह बीकानेरका रहने वाला बच्छावत गोत्रीय ओसवाल था और खरतर गच्छीय श्रीजिनचन्द्रमूरिका भक्त था। राय कल्याणमलकी ओरसे अकबरके दर्बारमें रहता था । साधुओंका पधारना-जन्मसे तो अकबर मुसलमान था लेकिन वह इसका कट्टर अनुयायी नहीं था। उसे अन्य धर्मीका रहस्य जाननेको बड़ी इच्छा थी। इस लिये वह सब मत मतान्तरोंके पण्डित और उपदेष्टाओं को अपने दर्बारमें बुलाकर उनसे वार्तालाप किया करता। सं. १६३९ में जैनधर्म के प्रसिद्ध आचार्य हीरविजयसूरिको भी आगरे बुलाया। उनके उपदेशसे प्रभावान्वित होकर अकबरने कई दिनोंके लिये जीवहिंसा बन्द कर दी। कुछ बरस आगरा प्रान्तमें रह कर सूरिजी तो गुजरात देशको वापिस चले For Private And Personal Use Only
SR No.521585
Book TitleJain_Satyaprakash 1942 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1942
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size16 MB
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