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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शादूलविक्रीडित छन्द में एक पारसी पद्य लेखक-श्रीमान् डॉ. बनारसीदासजी जैन, M. A., Ph. D. दोस्ती वांद तुरा न वासय कुया हामा चुनी द्रोग् हसि, चीजे आमद पेसि तो दिलमुरा वूदी चुनीं काम्बरः । तं वाला रहमाण वासइ चिरा दोस्ती निसस्ती इरा, अल्लाल्लाहि तुरा सलामु बुजिरुक् रोजी मरा मे दिहि ॥ [अर्थ---हे स्वामिन् ! तेरा किसी में विशेष अनुराग नहीं है-यह सब झूठ है। जो कोई तेरे सामने भक्तिभावसे आता है, चाहे वह किकर ही हो, हे वीतराग ! तू उस पर क्यों अनुराग करता है ? इसी लिये हे अल्लाह ! तुझे नमस्कार हो । मुझे भी महती विभूति दे।] यह पद्य महं० विक्रमसिंहरचित “ पारसी भाषानुशासन "१ के मङ्गलाचरण का दूसरा२ श्लोक है । यह ग्रन्थ पारसी भाषा का कोश है जिसमें एक हज़ार के लगभग पारसी शब्दों के संस्कृत पर्याय दिये हैं। अम्बाला भंडार की प्रति के आठ पन्ने हैं जो १० इंच लंबे और ४। इंच चौडे हैं। प्रत्येक पृष्ठ पर १५ पंक्तियां हैं और प्रत्येक पंक्तिमें ५० के लगभग अक्षर हैं । लिपिकार ने लिपिसंवत् आदि कुछ नहीं दिया। देखने में यह प्रति दो अढाई सौ बरस से कम पुरानी न होगी। पारसी भाषानुशासन का उल्लेख न तो “ जैन ग्रन्थावली" में है और न ही मोहनलाल दलीचंद देसाईकृत “जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास" में है । प्रस्तुत लेखक ने इस कोश का परिचय " वूल्नर " स्मारक ग्रन्थ में प्रकाशित किया था जिसे पढकर गायकवाड ओरियंटल इन्स्टिट्यूट के डायरेकटर साहिबने यह प्रति मंगवा कर अपनी लाइब्रेरी के लिये इस के फोटोग्राफ बनवा लिये। इससे पाठक इस कोष तथा इस प्रति के महत्त्व का अनुमान लगा सकते हैं। (१) इसकी एक प्रति अम्बाला शहर के श्वेताम्बर भण्डार में विद्यमान है, देखिये A Catalogue of manuscripts in the Panjal, Jain Bhandars, Panjab University, Lahore. 1939. Item No. 1649. (२) पहला श्लोक संस्कृत प्राकृत मिश्रित है । यथा यद्गौरातिदेहसुन्दररदज्योत्स्नाजलौघे मुदा दठूणासणसेयपंकयमिणं नूणं सरं माणसं । (महाराष्टी) एयं चिंतिय झत्ति एस करदे ण्हाणंमि हंसो मदि (शौरसेनी) सा पक्खालदु भालदी भयवदी जड्डाणुलित्तं मणं ॥ (मागधी) (३) Woolner Commemoration Volume. Lahore, 1940. pp. 119-22 For Private And Personal Use Only
SR No.521583
Book TitleJain_Satyaprakash 1942 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1942
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size22 MB
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