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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ ......................................................................... फिलस्तीन, रूस और मिश्र आदि देशोंमें पहुंचकर आबाद हुए "
--[हिन्दुस्तानकदीम् उर्दू, पृ० १ फुटनोट] " आप बतला सकते हैं कि, यूनानमें जो पर्णासस ( PARNASAS ) पर्वत है उसका दूसरा नाम देवानिका ( DEWA NIKA ) क्यों पडा ? हम बतलाते हैं कि जैनमतके संतलोग पर्णासस अर्थात् पत्तोंके झोंपडोंमें रहा करते थे इसलिये तो पहला नाम पडा । चूंकि वह देवताओंके वासकी जगह थी इसलिये, दूसरा नाम पड़ा।
--[हिन्दुस्तानकदीम्, पृ० १७] __ " जिस प्रकार यूनानमें हमने साबित किया कि हिन्दुस्तानके नाम शहर और पर्वत विद्यमान हैं उसी प्रकार मिश्रदेशमें जानेवाले भाई भी अपने प्यारे वतनकों नहीं भूले, उन्होंने भी वहा एक पर्वतका नाम MERSE (सुमेरु) रक्खा । दूसरे पर्वतका नाम CALLA (कैलास) रक्खा । एक सूबा GURNA (गुरुना) है, जिसमें मन्दिर और मूर्तियां गिरनार जैसी आज तक मीलती हैं जो अवश्य वहाँ के ही (जैनी) लोंगोंने वसाया होंगा' इत्यादि ।
- [हिन्दुस्तानकदीम्, पृ० ४२] " किसी समयमें मिश्र और नाटालमें भी. जैनधर्म था ॥
-[पं० लेखराम आर्य मुसाफिरका 'रिसालाजेहाद' पृ० २५, मुसलमान धर्मोके प्रचारवाले देशोंके नकशेमें केफियतका खाना] ___“जो हालमें अनुसन्धान हुआ है और उसपर जो कल्पनायें कायम की गई हैं उनके सम्बन्धमें मथुराके जैन स्तूप की तरफ फिर ध्यानको आकर्षित करना जरूरी है। स्तूप पर दिये हुए दानकी तख्ती और कुतबे हैं। जो ज्यादह से ज्यादः इस्वी सन् सं. १५० वर्ष पहलेके हैं। जैन शास्त्रोंमें लिखा है कि इस स्तूपको देवताओंने बनाया था जिसका तात्पर्य यह है कि इसके बननेका समय प्राचीनताके अन्धकारमें छिपा हुआ है। परन्तु इस बातको प्रकट करनेके लिये हमारे पास प्रमाण है कि प्रायः यह इस्वीसनसे ६०० वर्ष पहिले बना था इस कारण यह भारत वर्षमें सबसे पुराणी इमारत है।
-[इस्वीसन् १९०२ अक्तुम्बर के 'ओरियंटल में 'भारतवर्षमें सबसे पुरानी इमारत' लेख पृ० २३-२४] ___ इन उपर्युक्त प्रमाणोंसे स्पष्ट तौरसे सिद्ध होता है कि जैनधर्म किसी समयमें एशिया, यूरोप, अमरिका इन तीनों महाद्वीपोमें फैला हुआथा ।
-"दिगम्बर जैन,” १९-४, वि. सं.१९८२ के अङ्कसे उद्धृत ।
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