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जैनधर्मकी प्रधानता व प्रचार
सं० श्री. हरिश्चंद्र जैन, नजीबाबाद " Yea ! her (Jain) religion is only true one upon earth the primitive faith of all mankind."
(J.A, Dubai ) अर्थ-निःसंदेह जैनधर्म ही पृथ्वी पर एक सच्चा धर्म है और वही मनुष्य मात्रका आदि धर्म है।
___-[ जे. ए, दुबाई (मिशनरी) का लेख] * According to Jain Purana quoted by Wilke the historian of Mysore the said Purana Bhattarak was the sister's son of Var«haman the celebrated Jain Saint, the last of the series of twenty four, who founded a new religious sect chiefly supported by magical illusions and who extended his religion west-word towards Persia and Arabia.”
(Mr. Thomas C. Reaci B. A., Malbar Quarterly Review' December 1904 ( Jain settlement in Karnatak) Page 315 foot note 3 ). __ अर्थ-वर्धमान चौवीस तीर्थंकरोंमें अंतिम तीर्थंकर थे जिन्होंने (केवलज्ञानविभूतिसहित) नये धर्मका प्रादुर्भाव किया और जिन्होंने पश्चिमसे फारिस और अरबकी तरफ अपने धर्मको फैलाया ।
-'मलबार क्वार्टी की इ. स. १९०४ के दिसम्बर की तीसरी जिल्द में मी० थाम्स सी. राईस, बी. ए. का "कर्णाटकमें नियों का निवास" लेख, पृ० ३१५ की तीसरी फूटनोट ]
"आठवीं शताब्दी सन्इस्वीमें आचार्य कमलशील जैनियोंके पूर्ण विद्वान् थे और क्या यह वही प्रसिद्ध विद्वान् नहीं थे जिनको महाराज थिसरगंडी हुशानने चीनदेशके बौद्धमती विद्वान् होशंग-महायानसे शास्त्रार्थे करनेके लिए तिब्बतमें बुलाया था ? तिब्बती राजाने तिब्बतमें आठवीं शताब्दीके मध्यके निकट राज किया और कमलशीलकी युक्तिको चीनी नैयायिककी युक्तिसे ज्यादा प्रबल देखा । चुनांचे उसने भारतवर्षके नैयायिक (कमलशील)की गर्दनमें जयमाला डालदी। उस समयसे तिब्बतके रहनेवाले कमलशीलके अनुयायी हो गए।"
-प्रो० बुल्हर, पीएच. डी., सी० आइ० इ०का पत्र, तिब्बतकी पुस्तक ___ " जब बौद्धमत और हिन्दुमतके लोगोमें सारे हिन्दुस्तानमें संग्राम हो रहा था तब बौद्धमत और जैनमतके लोग यहांसे निकलकर युनान, कार्थेज, फिनीशिया,
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