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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
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पूजा को । नौका से गंगा पार हो कर गंगातट पर डेरा दिया। संघपति ने नगर में पडह बजाया जिससे अगणित ब्राह्मण और भिखारी एकत्र हो गये। संघपति ने रुपयों के बोरे के बोरे दान में दे डाले । वहां से सिंहपुरे गये; यहां श्रेयांस भगवान के ३ कल्याणक हुए हैं। चन्द्रपुरी में चन्द्रप्रभु के ३ कल्याणक की भूमि में चरणों की पूजा की। वहां से वापिस आकर संघपति ने तीसरी कडाही की । वहां से मुगलसराय आये, यहां खजूर के वृक्ष बहुलता से हैं। फिर मोहिनीपुर हो कर मम्मेरपुर पहुंचे । ( संघपति की पुत्रवधु ) संघश्री ने कन्या प्रसव की । यहां ४ मुकाम किये । फागुण चौमासा करके सहिसराम आये । वहां से गीठोलीसराय में वासा किया । फिर सोवनकूला नदी पारकर महिमुदपुर आए, बहिबल में डेरा किया। चारुवरी की सराय होकर पटना पहुंचे। सहिजादपुर से पटना दो सौ कोश है, यहां मीर्जा समसत्ती के बाग में डेरा दिया। · पटना में श्वेताम्बर मन्दिरों में एक ऋषभदेव भगवान का और दूसरा खमणावसही में पार्श्वनाथ भगवान का है । डुंगरी के पास स्थूलिभद्रस्वामी की पादुका है, सुदर्शन सेठ की पादुकाओं का भी पूजन किया । जेसवाल जैनी साह ने समस्त संघ की भोजनादि द्वारा भक्ति की । दूसरे दिन खंडेलवाल ज्ञाति के सा० मय' ने कडाही दी। पटने से आगे मार्ग संकीर्ण है इसलिए गाडियां यहीं छोडकर डोलियां साथ लेली, चार मुकाम करके संघ चला, फतेपुर में १ मुकाम किया वहां से आधे कोश पर वानरवन देखा । महानदी पार होकर विहार नगर आये, यहां जिनेश्वर भगवान के तीन मन्दिर थे । रामदेव के मंत्रीने आकर नमस्कार किया और कार्य पूछा । संघपति ने कहा हम गिद्वौर के मार्ग आवे यदि कोल (वचन) मगायो ! मत्री ने आदमी भेजकर कोल मंगाया ।
विहार में एक मुकाम कर पावापुर पहुंचे । भगवान की निर्वाण भूमि पर पीपल वृक्ष के नीचे चौतरे पर प्रभु के चरण वन्दन किये । तीर्थयात्रा करके मुहमदपुर में नदी के तटपर डेरा दिया, संघपति ने चौथी कडाही दी। वहां से नवादा गये । सादिक महम्मदखान का पुत्र मीजा दुल्लह आकर संघपति से मिला, उसे पहिरावणी दी । जिनालय के दर्शन करके चले, सबर नगर पहुंचे । रामदेव राजा के मंत्री ने स्वागत कर अच्छे स्थान में डेरा दिलाया। संघपति ने राजा से मिलकर यात्रा कराने के लिए कहा । राजा ब्राह्मण था, उसने कहा "दो चार दिन में ही आप थक गये! आप से पहले जो जो बडे संघपति आए हैं महीने महीने यहां रहे हैं । " संघपति उसकी मनोवृत्ति समझ कर आगए । चार मुकाम करके सिंहगुफा में श्री वर्द्धमानस्वामी को वन्दन किया।
(क्रमशः)
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