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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म १०] सातित समेतशि५२-२२।। सा२ [१८] .. .. . .. . .. .. . . . . .. ... .. ............................................. द्वारा जय जयकार के साथ गजारूढ होकर प्रयाण किया। नौका में बैठकर यमुना पार डेरा दिया। यहां स्थान स्थान का संघ आकर मिलने लगा, १५ दिन का मुकाम हुआ, श्वे. साधु-साध्वी महात्मादि ७५, यति ध पंडित (दि०) ४६ सब १२१ दर्शनि, ३०० भोजक, चारण, भाट, गान्धर्व, ब्राह्मण, ब्राह्मणी, मोगी, संन्यासी, दरवेश, आदि अगणित थे। २१ धर्मार्थ गाडे थे, याचकलोग मनोवाञ्छित पाते थे किसीको कोई चीज की कमी नहीं थी। १५ दिन ठहर कर प्रभु पार्श्वनाथ की पूजा कर संघ चला। जहां जहां ओसवाल व श्रीमालादिके घर थे बहां थाल १ खांड सेर २ व श्रीफल से लाहण की। संघ की रक्षा के हेतु ५०० सुभट साथ थे। प्रथम प्रयाण भाणासराय में हुआ । ३ मुकाम किये, वहांसे महम्मदपुर होते हुए पीरोजपुर आए, ६ मुकाम किए। मुनिसुव्रत भगवान की पूजा करके लाहणादि करके चंदवाडि गये। वहां स्फटिकमय चन्द्रप्रभु की प्रतिमा के दर्शन किये। वहां से पीरोजाबाद, आये, फिर रपरी प्रयाण किया, नौका में बैठकर यमुना नदी उतरके सौरीपुर पहुंचे। नेमिनाथ प्रभु के जन्मकल्याणक तीर्थ का धन्दन पूजा कर फिरसे रपरी आये | यहाँ ५२ जिनालय को वन्दन किया, संघपति ने प्रथम कडाई (जोमनवार) की। सरस के दिगंबर देहरेका वन्दन कर अहीरसराय में डेरा दिया। वहां से इटावा, बाबरपुर, फुलकईताल, भोगिनीपुर, सांखिसराहि, कोरट्टइ, बिदलीसराय में डेरा करते हुए १ दिन फतेपुर ठहरे। हाथियागाम, कडइ, सहिजादपुर आये, श्री संघ हर्षित हुआ। सहिजादपुर, महुआ आए, वहां मृगावती ने वीरप्रभु से दीक्षा ली थी। वत्स देश की कौशाम्बी में पद्मप्रभु के तीन कल्याणक हुए हैं, वीर प्रभु ने चंदनवाला के हाथ से छम्मासी का पारणा किया था। संघपति ने संघसहित प्रभु की चरणपादुकाओं का वन्दन किया, अनाथी मुनि भी यहीं के थे। एक कोस दूर धन्ना का साल है वहां से वापिस सहिजादपुर आये, एक मुकाम करके दूसरी कडाही की। वहां से फतेपुर होकर प्रयाग आये, यहां अन्निकापुत्र को गंगा उतरते केवलज्ञान हुआ था। कहते हैं कि ऋषभप्रभु के केवलज्ञान का स्थान पुरिमताल भी यही है। अक्षयवड़ के नीचे प्रभु के चरणों की पूजा की, यहां दिगंबरों के ३ मन्दिर हैं जहां पार्श्वनाथादि प्रभु के दर्शन किए । गंगा के तटपर झुसीसइ उंचे स्थानपर डेरा दिया, वहांसे खंडियासराय, जगदीशसराय, कनकसराय होते हुए बनारस पहुंचे। - बनारस में पाव', सुपार्श्व तीर्थकरों के कल्याणक हुए हैं। विश्वनाथ के मन्दिर के पास ५ प्रतिमाए ऋषभदेव, नेमिनाथ व पार्श्वप्रभु की है। अन्नपूर्णा के पास पार्श्वप्रभु की प्रतिमा है। खमणावसही में बहुतसी प्रतिमाएं है जहां संघ ने पूननादि किया। पाचप्रभु की रक्तवर्ण प्रतिमा, ऋषभ, पार्श्व', चन्द्रप्रम व वर्द्धमानप्रभु की चौमुख प्रतिमाओं का कुसुममालादि से अर्चन कर श्री सुपार्श्व'प्रभु की कल्याणक भूमि भूहिलपुर, ( ? भदैनी घाट) में प्रभु की For Private And Personal Use Only
SR No.521580
Book TitleJain_Satyaprakash 1942 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1942
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size20 MB
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