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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org גל [ ५१८ ] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [वर्ष ७ करता है। सम्राट जहांगीर के शासन में अर्गलपुर ( आंगरा) में ओसवाल अंगाणी लोढा राजपाल पत्नी राजश्री पुत्र रेखराज पत्नी रेखश्री पुत्र कुंअरपाल सोनपाल निवास करते थे । एक दिन दोनों भ्राताओं ने विचार कियाशत्रुनय की यात्रा की, जिनभुवनकी प्रतिष्ठा करा के पद्मप्रभु की स्थापना की । सोनपालने कहा - "भाईजी ! अब समेतशिखरजी की यात्रा की जाय !" कुंवरपालने कहा- " सुन्दर बिचारा, अभी बिम्बप्रतिष्ठा में भी देरी है । यह विचार कर दोनों भाई पोसाल गए और यात्रा मुहूर्त्त के निमित्त ज्योतिषियों को बुलाया । गणक और मुनि ने मिलकर सं. १६६९ माघ कृष्णा ५ शुक्रबार उत्तरा फाल्गुनी कन्यालग्न में मध्यरात्रि का मुहूर्त्त बतलाया । गच्छपति श्री धर्ममूर्त्तिरि को बुलाने के लिए विनतिपत्र देकर संघराज (कुंअरपाल के पुत्र) को राजनगर भेजा । गच्छपति ने कहा “ तुम्हारे साथ शत्रुंजय संघ में चले तब मेरी शक्ति थी अभी बुढापा है, दूर का मार्ग है, विहार नहीं हो सकता । यह सुन संघराज घर लौटे । राजनगर के संघ को बुलाकर ग्राम ग्राम में प्रभावना करते हुए सीकरी आप । गुजरात में दुष्काल को दूर करने वाले संघराज को आया देख स्थानीय संघने उत्सव कर बधाए । शाही फरमान प्राप्त करने के लिए भेंट लेकर सम्राट जहांगीर के पास गए, वहां दिवान दोस मुहम्मद नवाब ग्यासवेग और अनीयराय ने इनकी प्रशंसा करते हुए सिफारिश की। सम्राट ने कहा “मैं इन उदारचेता ओसवाल को •अच्छी तरह जानता हूं, इनसे हमारे नगर की शोभा है, ये हमारे कोठीवाल. *हैं और बन्दी छोडावण इनका विरुद है । मैं इनपर बहुत खुश हूं, जो मांगे सो दूंगा !" सेनानी के अर्ज करने पर सम्राट ने संघपति के कार्य की महती प्रशंसा करते हुए हाथोहाथ फरमान के साथ सिरोपाव निसाणादि देकर विदा किए। नाना वाजित्रों के वजते हुए शाही पुरुषों के साथ समारोह से घर आकर निम्नोक स्थानों के संघ को आमंत्रणपत्र भेजे गए:-- Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अहमदाबाद, पाटण, खंभात, सूरत, गंधार, भरौंच, हांसोट, हलवत्र, मोरबी, थिरपत्र, राधनपुर, साचोर, भीनमाल, जालोर, जोधपुर, समियाना, मेहता नागौर, फलोधी, जेसलमेर, मुलतान, हंसाउर, लाहौर, पाणीपंथ, महिम, समाणो, सीहनवे, सोबनपंथ, सोरठ, बाबरपुर, सिकंदरा, नारनौल, अलवर, कोट्टरवाडा, दिल्ली, तज्जारा, खोहरी, फत्तीयाबाद, उज्जैन, मांडवगढ, रामपुर, रतलाम, बुरहानपुर, बालापुर, जालणापुर. ग्वालेर, अजमेर, चाट, आंम्बेर, सांगानेर, सोजत, पाली, खैरवा, सादडी, कुंभलमेर, डीडवाणा, बकानेर, जयतारण, पीपाड, मालपुर, सिद्धपुर, सिरोही, वाहडमेर, ब्रह्मावाद, म्याण, सिकन्दराबाद, पिरोजपुर, फतैपुर, पादरा, पीरोजाबाद, इत्यादि. सब जगह निमंत्रण भेजे गये, महाजनों को घर घर में, यति महात्माओं को शालाओं में और दहेरे के दिगम्बर यतियों को भी प्रणाम करके संघ में सम्मिलित होनेकी विनती की। मूहुर्त के दिन वाजिश बजते हुए याचकादि For Private And Personal Use Only
SR No.521580
Book TitleJain_Satyaprakash 1942 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1942
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size20 MB
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